अलेापी शुक्ला स्वतंत्रता दिवस पर विशेष। लॉर्ड मैक्कॉले ने 02 फरवरी 1835 को अंग्रेज़ी पार्लियामेण्ट में भाषण देते हुए कहा था, ”मैंने इण्डिया के एक सिरे से दूसरे सिरे तक यात्रा की है और वहाँ पर एक भी चोर या भिखारी नहीं देखा है। इस देश में मैंने ऐसी समृद्धि, इतने ऊंचे नैतिक मूल्य और ऐसे ऊंचे चरित्रबल के लोग देखे हैं कि मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि हम कभी इस देश को अपने अधीन कर पाएंगे, जब तक कि हम उसकी मेरुदण्ड को न तोड़ दें, जो उनकी अध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत है। हम उनकी प्राचीन पद्धति और संस्कृति को बदलेंगे, जिससे वे अपना आत्मसम्मान खो देंगे और वे ऐसे हो जाएंगे, जैसा हम चाहते हैं। अंग्रेज़ों ने यही किया, जिससे सबकुछ बदलता चला गया।
वास्तव में अंग्रेज़ इस प्राचीन राष्ट्र की मेरुदण्ड को तोडऩे के अपने नापाक मिशन में सफल हो गए। उन्होंने प्रेम, सद्भाव, भाईचारा, नशामुक्त, मांसाहारमुक्त तथा चरित्रवान् नैसर्गिक जीवन वाली चट्टान की तरह सुदृढ़ भारत की संकृति को तोड़ा, गुरुकुल आधारित शिक्षा व्यवस्था, जो कि भारतीय संस्कृति की नीव का कार्य करती थी, उसको बदलकर अंग्रेज़ी मॉनटेसरी शिक्षा लागू की तथा भारतीय संस्कृति की धार्मिक आस्था की केन्द्र गोमाता के प्रति भारतीय लोगों में अनास्था पैदा की, कत्लखाने खोले गए, शराब का कारोबार शुरू हुआ और अंग्रेज़ों की इसी घृणित व गंदीचाल को हमारे देश के कथित राजनेता परवान चढ़ा रहे हैं।
अंग्र्रेज़ों के द्वारा पहला कत्लखाना कलकत्ता में खोला गया और मांसाहार को पौष्टिक बताते हुए इसका खूब प्रचार किया गया। अंग्रेज़ चाहते थे कि भारतीय अपनी संस्कृति को भुलाकर उनकी तरह मांसाहार पद्धति को अपनाएं, जिससे प्रेम, करुणा, दया का भाव समाप्त हो और वे एक-दूसरे के प्रति अहिंसक भाव की जगह हिंसक प्रवृत्ति की ओर बढ़ें। मांसाहार के कारण ही आज मानवीय सभ्यता का विनाश हो रहा है।
इसी प्रकार अंग्रेज़ सरकार के द्वारा शराबघर व वेश्यालय भी पहले अपनी सेना के छावनी क्षेत्रों कलकत्ता, गोरखपुर, मेरठ, इलाहाबाद, मुंबई, दिल्ली आदि में स्थापित किए गए। आगे चलकर शराबखानों व वेश्यालयों का विस्तार किया। इस तरह अंगे्रज़ों की तरह भारतीय भी भोगविलास के आदी बनते गए। एकओर भारतीय मनीषी देश की अध्यात्मिकसंस्कृति को जीवंत बनाते हैं, तो दूसरी ओर अंग्रेज़ों की गंदी नीति पर चलने वाले राजनेता उस संस्कृति को तोडऩे का कार्य कर रहे हैं और आज स्थिति यह है कि तेजी के साथ चारित्रिक, नैतिक व अध्यात्मिक पतन होता चला जा रहा है।
महात्मा गांधी जी द्वारा लिखित पुस्तक, ‘की टु हैल्थ में लिखा है कि ‘शराब शारीरिक, मानसिक, नैतिक व आर्थिक दृष्टि से मनुष्य को बर्बाद कर देती है। इसके नशे में मनुष्य दुराचारी बन जाता है।
ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री ग्लैडस्टन के अनुसार, ‘शराब कितनी ही थोड़ी मात्रा में क्यों न पी जाए, वह मानसिक शक्ति को खराब कर देती है, क्योंकि यह दिमाग के स्नायुकेन्द्रों को शून्य कर देती है। यह मस्तिष्क में भले-बुरे का बोध करने वाले अति सूक्ष्म तंतुओं को तोड़ देती है, जिससे सहनशक्ति की क्षमता नष्ट होजाती है।
सभी भारतवासियों को यह ज्ञात होना चाहिए कि उसके शरीर में बैठा आत्मतत्त्व सदैव चैतन्य रहते हुए शरीर को भी चेतनावान् बनाता है। शराब उसको अप्राकृतिक तरीके से सुप्तावस्था में लेजाती है और स्नायुतंत्र व अन्य अंगों को धीरे-धीरे क्षीण कर देती है तथा मनुष्य के अन्दर क्रोध जैसी राक्षसी प्रवृत्तियों को जन्म देती है।
यह कैसी विडम्बना है कि हमारे देश की सरकारों ने, कथित राजनेताओं ने भारतीय सभ्यता व संस्कृति को बढ़ावा देने के स्थान पर शराबखानों को निरन्तर बढ़ाया है। इससे समाज में चरित्र का पतन हुआ है। गोवंश का कत्ल करवाने व शराब के धंधों में अधिकांश धन राजनेताओं का लगा हुआ है। अंग्रेज़ों के द्वारा तो 350 कत्लखाने ही खोले गए थे और बड़े-बड़े शहरों में शराब की दुकानें खुलवाई गई थीं, किन्तु आज सरकारी मंज़ूरी से लगभग चार हज़ार पंजीकृत कत्लखाने व 30-35 हज़ार गैर-पंजीकृत कत्लखाने चालू हैं तथा शराब की लायसेंसी व अवैध दुकानें कुकरमुत्ते की तरह बढ़ रही हैं। आज राजनेताओं की कुत्सित मानसिकता के चलते भारतीय जनमानस में मांस व शराब के कारण दुश्चरित्रता, अनैतिकता व मानसिक विकलांगता हावी है। इस नशे-मांस रूपी नागपाश में फंसकर भारतीय संस्कृति दिन-प्रतिदिन पतन की ओर अग्रसर है।
पतन की ओर अग्रसर है मानव
परमसत्ता माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की सबसे सर्वोत्कृष्ट कृति मानव को उसके अन्दर की शक्ति का अहसास कराने तथा उसे महामानव बनाने में हमारे ऋषियों की शिक्षा-दीक्षा का अभूतपूर्व योगदान रहा है। किन्तु, आज अपनी संस्कृति और सभ्यता को भूलकर मानव पतन की ओर अग्रसर है। इसका सबसे बड़ा कारण है, अंग्रेज़ों की गंदी व ओछी षणयंत्रपूर्ण नीति, जिसमें हमारे देश के तथाकथित दुष्ट राजनेता आज भी लिप्त रहकर दिन दूनी-रात चौगुनी दर से शराब के व्यवसाय को प्रश्रय दे रहे हैं। इस शराब ने मानवीयमूल्यों को तो नष्ट किया ही है, हमारी प्राचीन संस्कृति, सभ्यता को नष्ट करने में भी इसका बहुत बड़ा हाथ है।
किसी ने नहीं किया भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का कार्य
समाजसुधार के नाम पर कार्य कर रहे धर्माचार्य, योगाचार्य, साधु-सन्त-संन्यासियों में से किसी ने भी भारतीय धर्म, संस्कृति, सभ्यता व मानवीय मूल्यों की ओर ध्यान नहीं दिया। आज प्राय: सभी धर्मगुरुओं, समाजसेवियों व राजनेताओं का लक्ष्य अधिकाधिक धनार्जन है तथा किसी का ध्यान समाज के उत्थान की ओर नहीं है।
त्रिधाराओं के माध्यम से पुन: अपने अध्यात्मिक गौरव को प्राप्त करेगा भारत
देश को इस सोचनीय अवस्था से उबारने का एक ही मार्ग है कि जनसामान्य को जगाकर उसे माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की आराधना में लगाया जाए। भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम तथा भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के संस्थापक-संचालक परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज इस कार्य को बड़े ही प्रभावी ढंग से कर रहे हैं। उनके द्वारा संस्थापित इन त्रि-धाराओं के द्वारा दिव्य अनुष्ठानों, शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों, रैलियों, नशाविरोधी जनान्दोलन व अन्य विविध माध्यमों से देशवासियों में शक्ति का संचार किया जा रहा है। इससे अब तक करोड़ों लोग नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान्, चेतनावान्, पुरुषार्थी और परोपकारी जीवन अपना चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है और वह दिन अब दूर नहीं, जब हम लोग अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुन: धारण करेंगे और हमारा चारित्रिक उत्थान होगा तथा अन्ततोगत्वा हमारा भारत देश पुन: विश्व में अपने अध्यात्मिक गौरव को प्राप्त करेगा।
नशे का, शराब का व्यापार करने वाले मानवता के शत्रु हैं
आपके लिए ज़हर है नशा और नशा को छोड़े बिना आप स्वयं का उत्थान नहीं कर सकते हैं, क्योंकि यह मानसिक और शारीरिक रूप से पंगु बना देता है। अत: हमें किसी भी दशा में मादकपदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। यद्यपि स्वार्थी राजसत्ताएं शराब सहित अन्य मादक पदार्थों के कारोबार को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दे रहीं हैं, लेकिन आपको अपने जीवनमूल्यों के प्रति सतर्क रहना है। नशे में लिप्त होकर अपना जीवन बरबाद मत करें और इतना ध्यान रखें कि ‘नशे का, शराब का व्यापार करने वाले और इस धंधे को प्रश्रय देने वाले मानवता के शत्रु हैं।
जागो, उठो और चेतनावान् बनो
भारतीय संस्कृति की पुनसर्थापना एवं मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिये सतत प्रयासरत ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का कहना है कि ”तुम मनुष्य हो! क्षुद्रभावना से ग्रसित होकर नशे का सहारा लेते हो। जब तक क्षुद्रभावना से बाहर नहीं निकलोगे, तब तक तुम्हें सत्य की अनुभूति नहीं हो सकती। नशे में लिप्त होकर स्वयं को तो नष्ट कर ही रहे हो, अपने परिवार की सुख-शान्ति को भी छीन रहे हो। क्या नशे की गंदगी में ही अपना जीवन नष्ट कर लोगे? इस गन्दगी के दलदल से बाहर निकलो और मनुष्य बनो। ध्यान, योग और ‘माँ’ की स्तुति के बल पर सोई हुई अन्तश्चेतना को जाग्रत् करके अपनी अस्मिता को वापस लाना होगा। वह मानव, मानव नहीं, जो कि अपनी मूल संस्कृति को भूल जाये। विकास के अन्धानुकरण में तुम अपनी अस्मिता, आत्मनिर्भरता व आत्माभिव्यक्ति को भूलते जा रहे हो, मानव होकर मानव की परिभाषा भूल चुके हो। जागो, उठो और चेतनावान् बनो, अन्यथा सबकुछ नष्ट हो जायेगा।