नई दिल्ली, संकल्प शक्ति। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के द्वारा 2017 से 2022 तक के दुष्कर्म के आंकड़े पेश किए गए हैं, जिसके मुताबिक, गत पाँच सालों में हिरासत में दुष्कर्म के 275 मामले दर्ज किए गए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य और जेलों, रिमांड होम, हिरासत के स्थानों और अस्पतालों के कर्मचारी शामिल हैं। गौरतलब है कि हिरासत में दुष्कर्म के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किए जाते हैं। यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है, जहाँ अपराधी किसी महिला के साथ दुष्कर्म करने के लिए अपने अधिकार या उसकी हिरासत की स्थिति का लाभ उठाता है।
2017 के बाद से हिरासत में दुष्कर्म के जो 275 मामले दर्ज किए गए हैं, उनमें उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक 92 मामले हैं, इसके बाद मध्यप्रदेश में 43 मामले हैं।
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक, पूनम मुत्तरेजा का कहना है किकस्टोडियल सेटिंग्स दुव्र्यवहार के लिए अवसर प्रदान करती हैं। राज्य एजेंट अक्सर अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए महिलाओं को मज़बूर करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ महिलाओं को उनकी सुरक्षा के नाम पर या उनकी कमजोर स्थिति के कारण हिरासत में लिया गया और उन्हें यौन हिंसा का शिकार बनाया गया।
कई मामले दर्ज नहीं होते
पूनम मुत्तरेजा का यह भी कहना है कि दुष्कर्म के ऐसे कारणों में अधिकारियों के द्वारा सत्ता का दुरुपयोग, पुलिस के लिए लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण की कमी और पीडि़तों से जुड़ा समाजिक कलंक शामिल हैं। ये तत्त्व ऐसे माहौल में योगदान करते हैं, जहाँ इस तरह के जघन्य अपराध हो सकते हैं। यहाँ तक कि कई मामलों में तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता।
उन्होंने कहा है कि पुलिस स्टेशनों में हिरासत में दुष्कर्म एक बहुत ही आम बात है। जिस तरह से जूनियर पुलिस अधिकारी, यहाँ तक कि महिला कांस्टेबल भी पीडि़ताओं से बात करते हैं, उससे पता चलता है कि उनके मन में उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं रहती।
भगवती मानव कल्याण संगठन एवं भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के साथ ही महिला समाजिक कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों को देश के लिए बेहद शर्मनाम निरूपित करते हुए, इसके लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जि़म्मेदार ठहराया है।