Saturday, November 23, 2024
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प्रकृतिसत्ता ने हमें यह मानवजीवन कर्म करने के लिए दिया है: बहन पूजा शुक्ला

नागपुर। भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 23-24 दिसम्बर 2023 को हनुमान मंदिर, हनुमान नगरी, वाघदरा, राजीव नगर, जि़ला-नागपुर  (महाराष्ट्र) में 24 घंटे का श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ सम्पन्न किया गया।

 समापन बेला पर संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष सिद्धाश्रमरत्न शक्तिस्वरूपा बहन पूजा शुक्ला जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ”साधनापथ पर बढ़ें, नित्यप्रति माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की आराधना करें, अपने बच्चों को कर्मवान और धर्मवान बनाएं। वे ममतामयी, करुणामयी, दयामयी माँ हैं। यदि आपको पूजा-पाठ करना नहीं आता, मन्त्रों का उच्चारण करना नहीं आता, तो भी निर्मल हृदय से ‘माँÓ की चरणों के पास बैठकर केवल माँ-माँ-माँ कहकर उन्हें पुकारें, आपकी पुकार उन तक अवश्य पहुँचेगी, केवल आपको अपने अन्दर के विकारों को छोड़कर ‘माँÓ के चरणों के पास बैठना पड़ेगा।

परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने बताया है कि हर मनुष्य के तीन ही मुख्य कत्र्तव्य हैं-मानवता की सेवा, धर्मरक्षा और राष्ट्र की रक्षा करना और यदि आप इन तीनों कत्र्तव्यों को पूरा करने के लिए तत्पर हैं, तो आपको अपने जीवन में कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ेगा। प्रकृतिसत्ता माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा ने हमें यह मानवजीवन कर्म करने के लिए, धर्मपथ पर बढऩे के लिए, समाज का कल्याण करने के लिए दिया है, तो इस जीवन को व्यर्थ में, विकारों में नष्ट न करें।

एक बार आप दिव्यधाम पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम अवश्य जाएं, वहाँ विशाल व भव्य श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में 11 दिव्यशक्तियों की स्थापना परम पूज्य गुरुवर ने की है। उन दिव्यशक्तियों के दर्शन करो और वहाँ पर बैठकर श्री दुर्गाचालीसा का पाठ करो। इससे जो लाभ आपको चारोंधाम की यात्रा करने से नहीं मिलेगा, वह लाभ वहाँ मिल जायेगा। मन में केवल श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए।ÓÓ

संगठन के केन्द्रीय महासचिव सिद्धाश्रमरत्न अजय अवस्थी जी ने कहा कि ”श्री दुर्गाचालीसा का यह 24 घंटे का अखण्ड पाठ कोई साधारण पाठ नहीं है, बल्कि इससे हमारी चेतनात्मकशक्ति का विकास होता है। यहाँ पर आप ‘माँÓ-गुरुवर की दिव्यछवि के समक्ष अपने विकारों को, अवगुणों को छोडऩे का संकल्प लेकर जीवन को आनन्दमय बना सकते हैं। भाइयों-बहनों, चाहे सतयुग रहा हो या त्रेता या फिर द्वापर हर युग में राक्षस थे, जिनका विनाश करने के लिए राम, कृष्ण जैसी शक्तियों ने जन्म लिया। इस युग में तो हर किसी के अन्दर राक्षसरूपी विकार बैठा हुआ है, जिसको ‘माँÓ के चरणों के पास बैठकर, संकल्पबद्ध होकर समाप्त करने की ज़रूरत है।ÓÓ

उद्बोधनक्रम के पश्चात् सभी भक्तों ने शक्तिजल और प्रसाद प्राप्त करके जीवन को कृतार्थ किया।

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