संकल्प शक्ति। भगवती मानव कल्याण संगठन एवं भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के कार्यकर्ताओं की नवम व अन्तिम चरण की दो दिवसीय बैठक के प्र्रथम दिवस का द्वितीय सत्र था। पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम स्थित विशाल प्रांगण में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, चण्डीगढ़, हिमांचलप्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, राजस्थान, गुज़रात, महाराष्ट्र, दमन एवं दीव, दादर नागर हवेली, लक्षद्वीप, पाण्डिचेरी, गोवा, केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश एवं सहारनपुर (उ.प्र.) व गाजि़याबाद (उ.प्र.) से आये हज़ारों कार्यकर्ताओं ने ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के अमृततुल्य चिन्तन तथा उनके निर्देशनों को सुना और उसी के अनुरूप कत्र्तव्य की दिशा में आगे बढऩे के लिए संकल्पित हुए।
उपस्थित कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद प्रदान करके उनकी आन्तरिकशक्ति का उन्हें अहसास कराते हुए परम पूज्य गुरुवरश्री कहते हैं-
”आपका धर्म और आपका कर्म क्या है? अब आप इससे अनभिज्ञ नहीं है। हर काल-परिस्थिति में हमारा धर्म और कर्म परिवर्तित होजाता है, हमारे धर्म, कर्म का स्वरूप बदलता रहता है और हम यदि इस पर विचार नहीं कर पाते, तो यह हमारी अज्ञानता होगी। यदि कोई व्यक्ति सावन-भादों में नदी को पार करना चाहता है, तो उसे बताया जाता है कि नाविक को बुलाकर नाव में बैठकर चले जाओ और वह नाव में बैठकर नदी के उस पार पहुँच जाता है, लेकिन ग्रीष्मऋतु में जब नदी में मात्र एक या दो फुट ही पानी रहता है, तो नदी को पार कैसे किया जाए? यहाँ पर विवेक की आवश्यकता पड़ती है। यदि नदी को पार करने वाले व्यक्ति के पास विवेक है, तो वह अपने पैरों पर चलकर ही नदी पार कर लेगा।
हमारा लक्ष्य है नदी के उस पार जाना, तो इसके लिए विवेक की आवश्यकता है कि कैसे जाना है? भौतिकता के झंझावातों में मनुष्य इतना उलझ चुका है कि वह सत्यपथ के महत्त्व को जानते, समझते हुए भी उस पर ठीक से नहीं चल पाता तथा दो कदम आगे, तो दो कदम पीछे चलता है और यही कारण है कि वह लक्ष्य तक पहुँच ही नहीं पाता। भौतिकतावाद में फंसा हुआ मनुष्य यही सोचता रहता है कि अच्छा घर होजाए, खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था होजाए, चारपहिया वाहन होजाए, अच्छा बैंक बैलेंस होजाए और इन्हीं नाशवान चीजों की व्यवस्था में ही लिप्त रहता है। यही कारण है कि वह सत्यपथ पर ठीक से चल नहीं पाता।
एक पौधा भी लगाना है, तो पंचतत्त्वों का सहारा लेना ही पड़ेगा। देवदुर्लभ शरीर पाकर भी लोग गंदगी से युक्त जीवन जी रहे हैं और गंदगी हैं – गलत विचार, गलत कर्म और इसी में लोग रत रहते हैं। सात्विकता से परिपूर्ण कार्य ही नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उनके मन में अच्छे विचारों का समावेश ही नहीं है। आख़्िार जीवन की समस्याओं को सुलझा क्यों नहीं पा रहे हो? कहीं न कहीं, कुछ न कुछ तो कमी है। उस कमी को तलाशो, अन्यथा कभी भी शान्ति और सन्तोष प्राप्त नहीं कर पाओगे।
कार्यकर्ताओं को सदैव सजगता का जीवन जीना चाहिए। विचार कीजिए कि हमने अपने जीवन में कितना परिवर्तन डाला, अपने परिवार में कितना परिवर्तन डाला और क्या हम अपने अन्दर शान्ति स्थापित कर सके हैं और क्या अपने कार्य के प्रति ईमानदार हैं? यह जो यात्रा है, वर्तमान के कलिकाल के वातावरण से अलग हटकर है। आपको आत्मकल्याण और जनकल्याण की दिशा में बढ़ाया जा रहा है। अत: साधनात्मक जीवन जियो, कामनाओं की पूर्ति में ही मत लगे रहो। आपको सत्यपथ पर चलने के लिए भगवती मानव कल्याण संगठन के रूप में एक माध्यम दिया गया है, एक रास्ता दिया गया है। सत्य की रक्षा तभी हो सकेगी, जब हमारे हर कर्म सत्यता पर आधारित होंगे।