Sunday, November 24, 2024
Homeसमसामयिकसबसे बड़ा दानी कौन?

सबसे बड़ा दानी कौन?

एक बार भगवान् कृष्ण और अर्जुन सैर पर निकले थे, बातचीत के दौरान कृष्ण ने कर्ण को सबसे बड़ा दानी कह डाला। इसपर अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि ‘कर्ण को दानवीर क्यों कहा जाता है और मुझे नहीं? जबकि दान मैं भी बहुत करता हूँ।

यह सुनकर भगवान् कृष्ण को अर्जुन में उसके अपने दान का अहंकार महसूस होता दिखा, तब कृष्ण ने कहा, ‘तुम मुझे कल प्रात: मिलना। जब अर्जुन उनसे दूसरे दिन मिले, तो कृष्ण ने उनसे दो पर्वतों के समूह में सोने के अकूत भंडार के बारे में बताते हुए कहा कि ‘वे उनका सारा सोना गाँव वालों के बीच बाट दें।Ó तब अर्जुन गाँव गए और सभी ग्रामवासियों से कहा कि ‘वे पर्वत के पास जमा होजाएं, क्योंकि वे सोना बांटने जा रहे हैं।Ó यह सुनकर गाँव वालों ने अर्जुन की जय जयकार करनी शुरू कर दी और अर्जुन छाती चौड़ी करके पर्वत की तरफ चल दिए।

दो दिन और दो रातों तक अर्जुन ने लगातार सोने के भंडार को खोदा और सोना गाँव वालो में बांटा। इसी बीच बहुत से गाँव वाले फिर से कतार में खड़े होकर अपनी बारी आने की प्रतीक्षा करने लगे। अर्जुन अब तक थक चुके थे। उन्होंने कृष्ण से कहा कि ‘अब वे थोड़ा आराम करना चाहते हैं, क्योंकि आराम किए बिना वे खुदाई नहीं कर सकेंगे। तब कृष्ण ने कर्ण को बुलावा भेजा और जब कर्ण वहाँ पहुचे, तो उन्होंने कर्ण से कहा कि ‘कर्ण आप इन सोने के भंडार को इन गाँव वालों के बीच में बाट दें। 

कर्ण ने सारे गाँव वालों को बुलाया और कहा कि ये दोनों पर्वत में सोने से भरे भंडार उनके ही हैं और वे आकर सोना प्राप्त कर लें।Ó ऐसा कहकर वह वहाँ से चले गए।

यह सुनकर अर्जुन भौंचक्के रह गए और सोचने लगे कि यह ख्याल उनके दिमाग में क्यों नहीं आया? तब कृष्ण मुस्कुराये और अर्जुन से बोले कि ‘तुम्हें सोने से मोह हो गया था। तुम गाँव वालो› को उतना ही सोना दे रहे थे, जितना तुम्हें लगता था कि उन्हें ज़रुरत है। इसलिए सोने को दान में कितना देना है इसका आकार तुम तय कर रहे थे? लेकिन कर्ण ने इस तरह से नहीं सोचा और दान देने के बाद कर्ण वहाँ से दूर चले गए। वे नहीं चाहते थे कि कोई उनकी प्रशंसा करे और ना ही उन्हें इस बात से कोई फर्क पड़ता था कि कोई उनकी प्रशंसा करे।

इस पर अर्जुन को अपने अहंकारी होने का पता चला और उन्होंने कृष्ण से कहा कि ‘मुझे यह आत्मज्ञान प्राप्त हो चुका है कि दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना उपहार नहीं, सौदा कहलाता है और मैंने इसकी कामना की, जबकि कर्ण ने नहीं। यही कारण है कि कर्ण सबसे बड़े दानवीर हैं और मैं नहीं।

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

आगामी कार्यक्रमspot_img

Popular News