ओडिशा के पुरी जि़ले में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से तो हैरान करता ही है, साथ ही इसका अध्यात्म की दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है। यह मंदिर सूर्य देव को समर्पित है। हिंदूधर्म में सूर्य देव को सभी रोगों का नाशक माना गया है। अपनी कई खासियत के चलते इस मंदिर ने यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में अपनी जगह बनाई है।
मंदिर की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने एक बार नारद मुनि के साथ अभद्र व्यवहार किया था, जिसकी वजह से नारद जी ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया। श्राप के कारण साम्ब को कुष्ठ रोग (कोढ़ रोग) हो गया। साम्ब ने चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में बारह वर्षों तक तपस्या की, जिसके चलते सूर्यदेव प्रसन्न हो गए। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इनके रोग का भी निवारण कर दिया। तभी साम्ब ने सूर्य भगवान् का एक मंदिर बनवाने का निर्णय किया। अपने रोगनाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, साम्ब को सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। इस मूर्ति को लेकर माना जाता है कि यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही एक भाग से, स्वयं देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी, लेकिन अब यह मूर्ति पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रख दी गई है।
समय की गति को दर्शाता है यह मंदिर
इस मंदिर को सूर्य देवता के रथ के आकार का बनाया गया है। इस रथ में 12 जोड़ी पहिए लगे हुए हैं। साथ ही इस रथ को 07 घोड़े खींचते हुए नज़र आते हैं। यह 07 घोड़े 07 दिन के प्रतीक हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। कहीं-कहीं इन 12 जोड़ी पहियों को दिन के 24 घंटों के रूप में भी देखा जाता है। इनमें से चार पहियों को अब भी समय बताने के लिए धूपघड़ी की तरह इस्तेमाल किया जाता है। मंदिर में 08 ताडिय़ां भी हैं जो दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं।