संकल्प शक्ति। जीवन में जो भी विषमताएं या समस्याएं आती हैं, उनके लिये परमसत्ता को दोष मत दो। हमें स्वयं के कर्मों का परिणाम भोगना पड़ता है। कर्मों के फल से कोई नहीं बच सकता। सत्कर्म करते चलो, सजग रहकर वर्तमान को संवार लो, तो भविष्य स्वयमेव संवरता चला जाएगा। कोई भी कार्य करने से पहले आत्मा की आवाज़ को अवश्य सुनो। आत्मा अच्छे-बुरे का संकेत दे देगी। दु:ख आने पर कभी भी भटकना नहीं चाहिए, बल्कि आत्मा की आवाज सुनकर आगे बढऩा चाहिए। सत्य को पकडऩे के लिए प्रथम तो सोच होनी चाहिए और फिर सोच को क्रियान्वित करने की प्रबल इच्छाशक्ति।
वर्तमान समय में पूरा समाज तनावग्रस्त है और इसकी तह में है कुत्सिक इच्छाओं की पूर्ति की मानसिक क्षुद्रता। इच्छाएं हमेशा सतोगुणी होनी चाहिएं। सत, रज और तम ये तीनों तत्त्व मनुष्य के अन्दर विद्यमान हैं। रजोगुणी इच्छाएं संस्कार को, पूर्व के अच्छे कर्मों को नष्ट करती हैं, जबकि तमोगुणी इच्छाएं पतन की ओर लेजाती हैं। यदि मनुष्य अपनी शक्ति का उपयोग सही दिशा में करने लगे, तो वह कभी दु:खी न हो। लेकिन, आज पूरा समाज रजोगुणीे एवं तमोगुणी इच्छाओं से ग्रसित हैं और सत के साथ कैसे जीना चाहिए, इससे दूर है। सतोगुणी इच्छाएं हमें मुक्तिपथ की ओर ले जाती हैं। इच्छाएं अनन्त हैं, जिन्हें मनमस्तिष्क में पालना ही भटकाव का कारण है। सतोगुणी इच्छाएं मनुष्य को कर्मवान्, धर्मवान््, चेतनावान् व पुरुषार्थी बनाती हैं, वहीं रजोगुणी इच्छाएं क्रोधी, लोभी व चरित्रहीन जबकि तमोगुणी इच्छाएं पतन की गहरी खाई में ढकेल देती हैं।
कर्म, भक्ति और ज्ञान के प्रदाता ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का चिन्तन है कि ”मनुष्य जीवन के लिए तीन बातें अति आवश्यक हैं- धर्म, धैर्य और पुरुषार्थ। यदि ये तीनों समाहित होजाएं, तो धन, यश, कीर्ति से सराबोर हो उठोगे। इन तीनों में एक तत्त्व ऐसा भी है, जिसमें शेष दोनों समाहित हैं और वह है पुरुषार्थ। पुरुषार्थ से तात्पर्य है-सत्कर्म। यदि मनुष्य पुरुषार्थी नहीं है, तो धर्म और धैर्य सहजभाव से दूर होते चले जाएंगे। अत: हर पल सजग रहने की जरूरत है कि सब कुछ चला जाए, लेकिन पुरुषार्थ न जाने पाए। यदि पुरुषार्थ है, तो सब कुछ है और पुरुषार्थ नहीं है, तो कुछ नहीं है। अत: धर्म और धैर्य धारण करने के साथ पुरुषार्थी बनें, जीवन सरस होता चला जायेगा।