संकल्प शक्ति। दिनांक 11 सितम्बर 2023 को गोवत्स द्वादशी के पावन पर्व पर पूजनीया शक्तिमयी माता जी और सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा अध्यात्मिकस्थली पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के परिक्षेत्र में स्थापित त्रिशक्ति गोशाला पर नवनिर्मित सर्वसुविधायुक्त अत्याधुनिक शेड का उद्घाटन किया गया।
इस अवसर पर शक्तिस्वरूपा बहनें और परम पूज्य गुरुवरश्री के अनेक शिष्य व भक्तगण उपस्थित रहे। इस शेड में गौ-माताओं के रहने और उनके भोजन-पानी का समुचित प्रबन्ध किया गया है तथा उनकी देखभाल के लिए पशुचिकित्सक व अनेक गोसेवक नियुक्त हैं।
ज्ञातव्य है कि गौ-माता को समर्पित गोवत्स पर्व भाद्र मास में कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बछड़े वाली गाय की पूजा करने के साथ ही गौ-रक्षा का संकल्प भी किया जाता है।
पूजन की विधि
गोवत्स द्वादशी पर्व की सुबह स्नान आदि करने के बाद गायों को उनके बछड़े सहित स्नान करवाएं। इसके बाद फूलों की माला पहनाएं। तत्पश्चात्, गाय और बछड़े के माथे पर तिलक लगाएं। इस दौरान मन ही मन कामधेनु का स्मरण करते रहें और बर्तन में चावल, तिल, जल और पुष्प रखकर गऊमाताओं का पूजन करें।
गोवत्स द्वादशी पर्व की कथा
जब पहली बार भगवान् श्रीकृष्ण जंगल में गाय बछड़ों को चराने गए थे। उस दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का शृंगार करके उन्हें गोचारण के लिए तैयार किया था। माता यशोदा ने गोचारण के लिए श्रीकृष्ण के साथ उनके बड़े भाई बलराम को भी भेजा और साथ में सख्त निर्देश दिया कि बछड़ों को चराने के लिए बहुत अधिक दूर तक जाने की कोई ज़रूरत नहीं हैं। आसपास ही गायों और बछड़ों को चराते रहना। इतना ही नहीं मां ने यह भी कहा कि कृष्ण को अकेले बिल्कुल भी न छोडऩा, क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है। बलराम ने भी श्रीकृष्ण का पूरा ध्यान रखा और मां के निर्देशों का पालन करते हुए शाम को गायों और बछड़ों के साथ वह लौट आए। मान्यता है कि तब से गोवत्सचारण की इस तिथि को गोवत्स द्वादशी पर्व के रूप में मनाया जाता है।