आधुनिक मनुष्य आजकल प्रायः किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है और बहुत परेशान है। यही कारण है कि उनके समाधान के लिए समाज में यहां-वहां अनेक हीलर्स और संस्थाएं कुकुरमुत्तों की भांति अस्तित्व में आगए हैं। हीलिंग के नाम पर उन्होंने लूट मचा रखी है। उनके द्वारा एक-एक हीलिंग सत्र के लिए तीस-तीस डॉलर तक वसूले जाते हैं, फिर भी समस्या के समाधान की कोई गारण्टी नहीं है।
उनमें से कुछ लोग तो प्रार्थना के द्वारा हीलिंग करते हैं, कुछ शरीर के प्रभावित भाग में ऊर्जा का संचरण करते हैं तथा कुछ रत्नजड़ित अंगूठियां धारण कराते हैं। वे क्या करते हैं, यह तो वे ही जानें, किन्तु, एक बात अवश्य है कि जिन लोगों का ध्येय ही मात्र पैसा कमाना है, उनका ध्यान तो सदैव पैसे पर ही रहेगा। अतः निश्चित ही वे पूरी तन्मयता एवं हृदय की गहराई से हींलिंग कर ही नहीं सकते।
पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में निम्नलिखिल कुछ सहज एवं सरल क्रियाएं बताई जाती हैं, जिन्हें आप स्वयं कर सकते हैं
1.‘माँ’-ऊँ का क्रमिक उच्चारण-
किसी शान्त स्थान पर अपनी मेरुदण्ड को सीधी करके सुखासन में बैठें और एक बार ‘माँ’, उसके बाद ऊँ फिर माँ और उसके बाद ऊँ का उच्चारण कम से कम पन्द्रह मिनट तक करें। इन ध्वनियों को काफ़ी देर तक करें और उनके गुंजरण पर ध्यान दें।
2. गुरुमंत्र एवं चेतना मंत्र का मानसिक जाप-
ख़ाली बैठे या चलते-फिरते इन मंत्रों को बिना बोले मानसिक रूप से दोहराते रहें। इसमें शुद्धि-अशुद्धि पर कोई विचार नहीं रहता।
3. प्राणसाधना-
प्रातःकाल शौच एवं स्नानादि से निवृत्त होकर सुखासन में इस प्रकार बैठें कि मेरुदण्ड सीधी रहे। अब धीरे-धीरे सांस अन्दर भरें। जब पूरी सांस भर जाए, तो उसे तब तक रोके रहें, जब तक आराम से रोक सकें। फिर धीरे-धीरे सांस बाहर निकाल दें। ये तीनों क्रियाएं क्रमशः पूरक, कुम्भक एवं रेचक कहलाती हैं। प्रारम्भ में इन क्रियाओं को कम से कम पांच मिनट तक और उसके बाद प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा बढ़ाकर कम से कम पन्द्रह मिनट तक अवश्य दोहराएं।
4. ध्यानसाधना-
प्राणसाधना के तुरन्त बाद अपने मन को अपनी दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक्र पर केन्द्रित करें। इसके साथ-साथ गुरुमंत्र-चेतनामंत्र का मानसिक जाप भी करें। कुछ देर बाद मानसिक जाप बन्द कर दें और शून्य अवस्था पर आने का प्रयास करें, अर्थात् जब मन में कोई भी विचार न हो। यदि मन भटकता है, तो उसे ममतामयी ‘माँ’ की छवि अथवा गुरुचरणकमलों की ओर ले जाएं।
5. शक्तिजल का पान तथा रक्षाकवच एवं कुंकुम तिलक धारण करना-
इस सिद्धाश्रम के द्वारा निःशुल्क वितरित किए जा रहे अभिमंत्रित शक्तिजल की दो-चार बूंदें नित्य पान करें। इसके साथ-साथ अपने आज्ञाचक्र को नित्य कुंकुम तिलक से अच्छादित रखें और रक्षाकवच भी गले में धारण करें। ये दोनों भी परम पूज्य गुरुवरश्री के द्वारा अभिमंत्रित हैं। इसीलिए इनका धारण करना फलीभूत होता है।
इन सभी क्रियाओं को करने से मात्र स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक समस्याओं का निवारण भी होता है। और, यहां पर यह सब कुछ नितान्त निःशुल्क प्रदान किया जाता है, यहां तक कि यहां पर आवास एवं भोजन की व्यवस्थाएं भी सदैव निःशुल्क रहती हैं। परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से मिलने का भी कुछ नहीं लिया जाता है। इसके अतिरिक्त योग भी यहां पर नितान्त निःशुल्क सिखाया जाता है।