हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इस मन्दिर को नानी मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है। जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर (वर्मीमिलियन), जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते है, से पुता हुआ है, जो संभवतया इसके आज के नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है।
हिंगलाज के आस-पास, गणेश देव, माता काली, गुरु गोरखनाथ दूनी, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बैठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं।
उत्पत्ति की एक कथा के अनुसार, सती के वियोग मे क्षुब्ध शिव जब सती की पार्थिव देह को लेकर तीनों लोकों का भ्रमण करने लगे, तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया और जहाँ-जहाँ सती के अंग- प्रत्यंग गिरे वे स्थान शक्तिपीठ कहलाये। केश गिरने से महाकाली, नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली, सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरी आदि शक्तिपीठ बन गये। हिंगोल नदी के तट पर उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था, जिसे हिंगलाज शक्तिपीठ कहा जाता है।
पूर्ण करती हैं भक्तों की मनोकामना
हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी माना जाता है, जो अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं। हिंगलाज मुख्य मंदिर है और मंदिरों के पड़ोसी भारतीय राज्य गुजरात व राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं। मंदिर को विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है।
स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। वेे मंदिर को नानी का मंदिर कहते है।