उचित संस्कार न होने से लोगों का परिवारिक वातावरण अशान्त रहता है। समाज का एक भी व्यक्ति निश्चिंतता से यह नहीं कह सकता कि वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट है, चाहे उनके पास भौतिक सम्पदा कितनी ही क्यों न हो। जबकि, एक साधक, जो प्रकृति के नियमों के अनुसार चलता है, वह चुनौती के साथ कह सकता है कि उसके आनन्द कोष में वृद्धि हो रही है और उसका परिवारिक जीवन खुशहाल है।
सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का चिन्तन है कि ”अपनी सुषुम्ना नाड़ी को चैतन्य बनाएं और इसके लिए योग-ध्यान-साधना के क्रमों को अपनाना पड़ेगा, साधक बनना पड़ेगा। इसके लिये सर्वप्रथम आपको अपने आचार, विचार, व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। आपकी साधना में संक ल्प होना चाहिये, संकल्प में विकल्प का कोई स्थान नहीं होना चाहिये। यदि एक बार भी प्रकृति की मूलसत्ता को स्वीकार करके यह संकल्प ले लें कि मुझे अध्यात्मिक जीवन जीना है,, नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान् जीवन जीना है, नित्य सूर्योदय से पहले उठना है और कर्मपथ पर आगे बढ़ते रहना है, तो आपका अनुकरण आपके बच्चे भी करेंगे। यह संस्कार आपसे व आपके बच्चों से कोई नहीं छीन सकता।
अलोपी शुक्ला
कार्यकारी सम्पादक
संकल्प शक्ति