Sunday, November 24, 2024
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मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 03 अगस्त 1886 में उत्तरप्रदेश के झांसी के पास चिरगांव में हुआ था। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। रामस्वरूप शास्त्री, दुर्गादत्त पंत आदि ने उन्हें विद्यालय में पढ़ाया। घर में ही हिन्दी, बंगला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया। 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कनकलता नाम से कविता रचना आरम्भ किया। वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये और उनकी कवितायें खड़ी बोली में मासिक ‘सरस्वतीÓ में प्रकाशित होने लगीं।

प्रथम काव्य संग्रह ‘रंग में भंगÓ तथा बाद में ‘जयद्रथ वधÓ प्रकाशित हुई। सन् 1912-1913 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत ‘भारत भारतीÓ का प्रकाशन किया। उनकी लोकप्रियता सर्वत्र फैल गई। सन् 1916-17 ई. में महाकाव्य ‘साकेतÓ की रचना आरम्भ की। साकेत तथा पंचवटी आदि ग्रन्थ सन् 1931 में पूर्ण किये। इसी समय वे महात्मा गांधी जी के निकट सम्पर्क में आये। ‘यशोधराÓ सन् 1932 ई. में लिखी। गांधी जी ने उन्हें ‘राष्ट्रकविÓ की संज्ञा से विभूषित किया। 16 अप्रैल 1941 को वे व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिर$फ्तार कर लिए गए।

 पहले उन्हें झाँसी और फिर आगरा जेल ले जाया गया। आरोप सिद्ध न होने के कारण उन्हें सात महीने बाद छोड़ दिया गया। सन् 1948 में आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुये। सन् 1953 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सन् 1962 ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये। वे वहाँ मानद प्रोफेसर के रूप में नियुक्त भी हुए। 1954 में साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। चिरगाँव में उन्होंने 1911 में साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रेस शुरू की और झांसी में 1954-55 में मानस-मुद्रण की स्थापना की।

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