Saturday, November 23, 2024
Homeदेश प्रदेशलोकपर्व कजलियों का त्यौहार

लोकपर्व कजलियों का त्यौहार

धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है इस पर्व की रौनक

बुंदेलखंड और बघेलखण्ड में कजलियों का त्यौहार अतिउत्साह से मनाया जाता है। यद्यपि आधुनिकता की दौड़ के चलते अब इस पर्व की रौनक धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। यह लोकपर्व कोमल बिरवों को आदर और सम्मान के साथ भेंट करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। हालांकि कुछ ग्रामीण व शहरी इलाकों में इस परम्परा को अभी भी लोग जीवित किए हुए हैं।
यह त्यौहार विशेषरूप से खेती-किसानी से जुड़ा हुआ त्यौहार है। इस त्यौहार में विशेष रूप से घर-मोहल्ले की औरतें हिस्सा लेती हैं। नागपंचमी के दूसरे दिन अलग अलग खेतों से लाई गई मिट्टी को बर्तनों में भरकर उसमें गेहूं के बीज बो दिए जाते हैं।
एक सप्ताह बाद एकादशी की शाम को बीजों से तैयार कजलियों की पूजा की जाती है। फिर दूसरे दिन द्वादशी की सुबह उन्हें किसी जलाशय आदि के पास ले जाकर कजलियों को मिट्टी से अलग कर लिया जाता है। खोंटीं हुई कजलियाँ सभी अपने परिजनों, पड़ोसियों और मिलने-जुलने वालों को दिया जाता है। उसके बाद मुंह मीठा कराने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। यह पर्व वास्तव में स्नेह का पर्व है। इस पर्व में लोग एक-दूसरे को शुभकामनाओं के रूप में सदा हरा-भरा रहने, प्रसन्न रहने की कामना करते है।

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

आगामी कार्यक्रमspot_img

Popular News