बिरसा मुंडा जयंती भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में एक अधिकारिक अवकाश है। यह 19वीं शताब्दी में रहने वाले एक प्रमुख भारतीय धार्मिक नेता और आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी की जयंती प्रतिवर्ष 15 नवंबर को मनाई जाती है।
बिरसा मुंडा को भारत की सबसे बड़ी अनुसूचित जनजातियों में से एक मुंडा लोगों का लोकनायक
माना जाता है। ब्रिटिश राज (19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) के दौरान, अंग्रेज़ों ने मुंडाओं को उस ज़मीन का किराया देने के लिए मज़बूर किया जो उनके अधिकार में थी और ज़मींदारों को बंधुआ मज़दूर के रूप में काम करने के लिए मज़बूर किया। बिरसा मुंडा ने उसे बदलने के लिए संघर्ष किया।
विरसा मंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी में हुआ था। बिरसा के माता-पिता $गरीब किसान थे, जिन्हें अक्सर खेत मज़दूर के रूप में रोजगार की तलाश में बाहर जाना पड़ता था। हालांकि, इसने बिरसा को स्कूल जाने से नहीं रोका। वास्तव में, वह इतना तेज़ शिक्षार्थी था कि उसके शिक्षक ने उसे जर्मन मिशनरी स्कूल में दाखिला लेने का सुझाव दिया।
जल्द ही, उन्हें एक उपदेशक, एक चमत्कार-कर्मी और एक उपचारक की प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। विभिन्न जनजातियों के लोग उनका आशीर्वाद लेने और अपनी बीमारियों का इलाज पाने के लिए चल्कड गाँव में आते थे। अंतत: बिरसा ने खुद को एक भविष्यवक्ता घोषित कर दिया और ब्रिटिश शासन को समाप्त करने तथा मुंडा लोगों के खोए हुए मुंडा राज को फिर से स्थापित करने के लिए अथक संघर्ष किया। मुंडा लोग उन्हें धरती आबा कहने लगे, जिसका अर्थ है पृथ्वी का पिता।
बिरसा मुंडा के बढ़ते प्रभाव से अंग्रेज़ चिंतित थे, इसलिए उन्होंने अगस्त 1895 में उनकी गिर$फ्तारी का आदेश दिया और उन्हें गिर$फ्तार कर लिया गया। इसके बार विरसा को दो साल जेल की सजा सुनाई गई । जनवरी 1989 में अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों और ईसाई मिशनरियों के ख़्िाला$फ लड़ाई जारी रखी जो मुंडाओं का धर्म परिवर्तन कराना चाहते थे।
$फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और 09 जून को 24 साल की उम्र में जेल में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु का आधिकारिक कारण हैजा था। बिरसा मुंडा की जयंती अभी भी मुंडा लोगों द्वारा मनाई जाती है, जो झारखंड, ओडिशा (उड़ीसा), पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और त्रिपुरा राज्यों में रहते हैं। यहां तक कि पश्चिम बंगाल और झारखंड में भी इसे राजकीय अवकाश का दर्जा प्राप्त है।