भारत के राजस्थान राज्य में स्थित अरावली श्रेणी की घाटी में अजमेर नगर से पाँच मील दूर पश्चिम अजमेर जि़ले का एक नगर तथा स्थानीय मंडी है। इसके निकटवर्ती क्षेत्र में ज्वार, बाजरा, मक्का, गेहूँ तथा गन्ने की उपज होती है। कलापूर्ण कुटीर-वस्त्र-उद्योग, काष्ठ चित्रकला, तथा पशुओं के व्यापार के लिए यह विख्यात है। यहाँ पवित्र पुष्कर झील है तथा समीप में ही ब्रह्मा जी का पवित्र मंदिर है, जिससे प्रति वर्ष अनेक तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। अक्टूबर, नवंबर के महीनों में यहाँ एक विशेष धार्मिक एवं व्यापारिक महत्त्व का मेला लगता है। यह सागरतल से 2,389 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो औरंगजेब द्वारा ध्वस्त करने के बाद पुन: निर्मित किए गए हैं। पुष्कर में पाण्डवों के अज्ञात वास के समय पाण्डवों के द्वारा निर्मित पाँच कुण्ड भी हैं, जो कि नगर से पूर्व की ओर नाग पहाड़ पर स्थित है। यह पहाड़ लगभग 11 किमी. लम्बाई में है, जो कि अनेक ऋषियों की तपोस्थली रहा है। महर्षि अगस्त एवं वाम देव की गुफा भी यहीं है। इसी नाग पहाड़ पर राजा भर्तहरि की तपोस्थली है। यह पर्वत नगर के पूर्व से दक्षिण में स्थित है, जो कि अनेक जड़ीबूटियों से युक्त है। इस पहाड़ के ऊपर से एक ओर से अजमेर, तो दूसरी ओर से पुष्कर का मनोरम द्रश्य देखा जा सकता है। वर्ष में एक बार इसी पहाड़ पर लक्ष्मी पोळ नामक स्थान पर हरियाली अमावस के दिन भारी मेला लगता है।
पुष्कर का इतिहास
पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने यहाँ आकर यज्ञ किया था। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है, जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं। यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धनीमानी व्यक्तियों के द्वारा बनाए गए हैं।
पुष्कर का उल्लेख बाल्मीकि रामायण में भी हुआ है। बालकाण्ड सर्ग 62 श्लोक 28 में विश्वामित्रोह्यपि धर्मात्मा भूयस्तेपे महातपा:। पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दशवर्षशतानि च।। अर्थात् महर्षि विश्वामित्र ने यहाँ अखण्ड तप किया था। श्लोक 15 के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थी।
बड़ी संख्या में पहुँचते हैं पर्यटक
भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज़्यादा है। इनमें बड़ी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नज़दीकी है, इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं, लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है।
कार्तिक पूर्णिमा को लगता है पुष्कर मेला
अजमेर से 11 किमी दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल पुष्कर है। यहाँ पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हज़ारो लोग इस मेले में आते हैं और पुष्कर झील में स्नान करते हैं। भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।
राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्त्व देता है। स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाजन करते हैं।
इस समय यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें पशुओं से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम भी किए जाते हैं, जिसमें श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत किया जाता है।
पुष्कर का ब्रह्मा मन्दिर
पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को ‘तीर्थराजÓ कहा जाता है, उसी प्रकार इस तीर्थ को ‘पुष्करराज कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं- ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर, मध्य (बूढ़ा) पुष्कर और कनिष्क पुष्कर।
ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है, जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी के दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।
पूरे भारत में एक ही मंदिर
पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा, देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।