त्रिवेन्द्रम। केरल हाईकोर्ट ने शक्रवार को तलाक को लेकर एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने ईसाईयों पर लागू होने वाले तलाक अधिनियम 1869 के एक प्रावधान को रद्द कर दिया है। इस $कानून के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करने से पहले कम से कम एक साल अलग रहना ज़रूरी था। अधिनियम में पहले दो साल ज़रूरी किए गए थे, लेकिन साल 2010 में इसी कोर्ट ने एक मामले में इसे घटाकर एक साल कर दिया था।
पीठ ने कहा, वैवाहिक विवादों में कानून को पक्षों को कोर्ट की सहायता से मतभेदों को सुलझाने में मदद करनी चाहिए। पीठ ने आगे कहा कि आज फैमिली कोर्ट एक और जंग का मैदान बन गया है, जो तलाक की मांग करने वाले पक्षों की पीड़ा को बढ़ा रहा है। पीठ ने टिप्पणी कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में $कानूनी दृष्टिकोण धर्म पर आधारित होने के बजाय नागरिकों की सामान्य भलाई पर होना चाहिए। सामान्य भलाई की पहचान करने में धर्म का कोई स्थान नहीं है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि $कानून में बदलाव का समय आ गया है।