Sunday, November 24, 2024
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पवित्र मंशा से की गई यात्राएं ही लक्ष्य को प्राप्त करती हैं

आजाद भारत ही नहीं, बल्कि आज़ादी से पहले भी भारतीय इतिहास में धार्मिक, समाजिक व राजनैतिक यात्राओं का एक लम्बा इतिहास रहा है। यात्राओं का प्रभाव उनके सप्रयोजन के लक्ष्य में ही छुपा होता है, तथापि लक्ष्य  जितना लोककल्याणकारी होगा, उतनी ही वह यात्रा प्रभावशाली होगी। स्पष्ट है कि यात्रा के प्रयासों की सार्थकता उसके उद्देश्यों में ही निहित होता है। प्राचीनकाल में महर्षि अगस्त्य के द्वारा की गई दुर्गम यात्रा, जिन्होंने विंध्याचल पर्वत शृंखला को पार करके सम्पूर्ण भारत को जोडऩे का कार्य किया और जिसका प्रभाव रामायण व महाभारतकाल से लेकर आजतक विद्यमान है। आदिगुरुशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में पदयात्राएं कर देश के चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर सनातन की अखण्ड़ चेतना को जन-जन में स्थापित किया। 

इसी प्रकार कुछ वर्णित अप्रत्यक्ष एवं प्रत्यक्ष यात्राओं में भारत देश के स्वतंत्र होने से पूर्व महात्मा गाँधी की दांडी यात्रा, सुभाषचन्द्र बोस की जापान, जर्मनी, रूस और बर्मा की यात्राएं व स्वतंत्र भारत में विनोबा भावे की भूदान आंदोलन की यात्रा, जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति से संबंधित यात्राएं, देश के तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव लाने में सफल रहीं। इसी तरह राम मन्दिर निर्माण की मांग व मंडल आयोग के विरोध में पैदा द्वेष के विरोध में लालकृष्ण आडवाणी की  सद्भावना रथयात्रा ने अपने निहित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए यात्राओं के व्यापक प्रभाव को प्रमाणित किया।

समय के साथ-साथ भौतिकतावाद के दौड़ते युग में परम्परागत विचारणाओं व धारणाओं के साथ-साथ वर्तमान समसामयिक सोच भी मानव के प्रत्येक कार्य में अपना रंग दिखाए बिना कैसे रहती? एक तरफ परम्परागत ढांचे के माध्यम से भारतीय मानसपटल ने ये तो स्वीकारा की यात्राओं के माध्यम से आमूल-चूल परिवर्तन संभव है, परन्तु आधुनिकता के प्रभाव से ग्रसित अमानवतावादी चिन्तन, राक्षसी चितवृत्तियां व प्रकृति के नियमविरुद्ध आचरण के कारण यात्राओं के लक्ष्य व उद्देश्य पूर्णत: बदलते चले गए।

वर्तमान में खिसके हुए जनाधार वाले नेता व राजनीतिक दलों की यात्राओं में उनकी कुत्सितमंशा छिपी रहती है। पिछले दिनों कई प्रदेशों में सम्पन्न हुई स्वार्थपरक राजनीतिक यात्राओं के साथ ही गत दिनों चर्चा का केन्द्र रही सितम्बर 2022 को आरम्भ हुई कन्याकुमारी से कश्मीर तक की कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के पीछे छिपी मंशा भी जनहितकारी न होने से, यह यात्रा निजीयात्रा बनकर रह गई। इस यात्रा के माध्यम से भाजपा विरोधी सभी दलों को जोडऩे का प्रयास किया गया, परन्तु इससे जो समर्थन मिला, वह दस्ताने पहनकर हाथ मिलाने जैसा रहा।

विविधता भरे इस देश को चेतना, चिन्तन और पवित्र विचारों से ही एक सूत्र में पिरोया जा सकता है, जबकि कुत्सितविचारों को लेकर की गई यात्रा, बिना परिचालक वाली बस की तरह है, जिसमें बेटिकट यात्रियों को अपनी यात्रा पूरी होने पर यात्रा व गंतव्य का कोई भान नहीं होता है। 

आज 21वीं सदी में जहाँ भारत वैश्विक लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व कर रहा है, वहीं आमजन भी स्वच्छ और स्वस्थ राजनीति क्या है, धीरे-धीरे समझने लगी है? स्वस्थ व स्वच्छ राजनीति का उद्देश्य होता है, समाज में चल रहे समसामयिक संघर्षों व  विषमताओं का समाधान तथा लोककल्याणकारी कार्यों को क्रियान्वित करना। यदि किसी भी चुनावी व राजनीतिक यात्रा में समाज व संगठन को सकारात्मक परिणाम देने वाले लक्ष्य व उद्देश्य नहीं हों, तो वो यात्राएं औचित्यहीन होकर रह जाती हैं। आज समय के बदलते स्वरूप में जहाँ राष्ट्र व जन-जन के हितार्थ समर्पित व संकल्पित विचारधारा वाले नेतृत्व की ज़रूरत है, वहीं राजनैतिक सचेतना, लोकतंत्र, संविधान, मौलिक अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जन-जन से जुड़कर इन विषयों के प्रति जनचेतना जाग्रत् करके ही लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

दर्शनशास्त्रियों व राजनीतिक विश्लेषकों का भी कहना है कि वर्तमान में पदयात्राओं के कौतूहल भरे विदरूप की बजाय, किसी अध्यात्मिक गुरु के निर्देशन में अध्यात्मिक क्रान्ति के माध्यम से ही नागरिकों में ज़ागरूकता लाई जा सकती है और तभी भारत को अच्छे जननेताओं की उपलब्धि संभव है ।

सौभाग्य की बात है कि भारत अध्यात्मिक ऊर्जा के साथ विशेष विचारधारा को लेकर एक नई करवट ले रहा है और धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के दिशा-निर्देशन में तीन धाराएं-भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी पल्लवित, पुष्पित हो रहीं हैं और इनके माध्यम से एक नई चेतना समाज में प्रवाहित की जा रही है। नि:संदेह ही इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि अध्यात्मिक क्रान्ति के माध्यम से ही सही अर्थों मेें राष्ट्र, धर्म व मानवता की रक्षा के लिए संकल्पित व संयमित शक्तिसाधक ही लोकतंत्र की रक्षा कर सकते हैं। क्योंकि, आजादी के 75 वर्षों के बाद भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अभी तक भारतीय राजनीति व राजनेताओं का बिगड़ा हुआ स्वरूप ही हमें प्राप्त होता रहा है। 

काली अन्धेरी रात के छिपने के बाद स्वर्णिम लालिमा लिए सूर्योदय की तरह भारतीय शक्ति चेतना पार्टी, समाज को प्रकाशित करने का कार्य कर रही है, जिसका पंचायत व ब्लॉकस्तर से लेकर राष्ट्रस्तर तक का प्रत्येक पदाधिकारी व कार्यकर्ता नशे-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान् व्यक्तित्त्व का है और जो अनीति-अन्याय-अधर्म व जातिभेद-छुआछूत जैसी समाजिक बुराईयों व विदरूपों से पूर्णत: दूर रहते हुए भारत को विश्वगुरु के रूप में पुन: स्थापित करने के लिए कृतसंकल्पित हैं।  

अनीता जी, चरखी दादरी (हरियाणा)राष्ट्रीय  सचिव: भारतीय शक्ति चेतना पार्टी

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