Sunday, November 24, 2024
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ब्रिक्स शेरपा की मीटिंग में चीन और भारत के बीच मतभेद आए सामने

डरबन। ब्रिक्स समूह की तेजी से बढ़ रही लोकप्रियता के बीच इसके विस्तार को लेकर क्या रणनीति हो, इसको लेकर समूह के दो अहम सदस्यों चीन और भारत में मतभेद सामने आ गए हैं। मंगलवार को डरबन में शुरू हुई तीन दिवसीय ब्रिक्स शेरपा की मीटिंग में दोनों देशों ने इसको लेकर अपना पक्ष रखा। भारत चाहता है कि विकासशील देशों के समूह ब्रिक्स में नए सदस्यों का प्रवेश पूर्व निर्धारित सुस्पष्ट मानदंड के आधार पर होना चाहिए, न कि सिर्फ मौजूदा सदस्यों की अनुशंसा के आधार पर नए सदस्य बनाए जाएं।

 बैठक में भारत ने स्पष्ट कहा है कि पहले सदस्यता के लिए कुछ मानक जैसे जीडीपी आकार, जनसंख्या आदि तय हों, फिर ये देखा जाए कि सदस्यता चाहने वाला देश इनमें से कितने मानदंडों पर खरा उतरता है, उसके बाद ही सदस्यता पर फैसला लिया जाए। गौरतलब है कि ब्रिक्स की सदस्यता के विस्तार का सुझाव पिछले साल चीन ने अपनी अध्यक्षता में हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान दिया था। राष्ट्रपति जिनपिंग के इस सुझाव को चीन की विस्तारवादी आकांक्षा से जोडक़र देखा जा रहा है, जिसके अंतर्गत वह समूह में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने असर वाले देशों को समूह का सदस्य बनाना चाहता है।

 19 देश बनना चाहते हैं सदस्य

अब तक 19 देशों ने ब्रिक्स की सदस्यता में रुचि व्यक्त की है। इनमें से 13 देशों ने औपचारिक रूप से और 06 देशों ने अनौपचारिक रूप से रुचि दिखाई है। इच्छुक देशों में अर्जेंटीना, नाइजीरिया, अल्जीरिया, इंडोनेशिया, मिस्र, बहरीन, सऊदी अरब, मैक्सिको, ईरान, इराक, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। बांग्लादेश और पाकिस्तान ने भी सदस्य बनने में रुचि दिखाई है।

कुछ देशों को शामिल करने पर जोर  दे रहा है चीन

बैठक में ये साफ हो गया है कि कुछ मौजूदा सदस्य कुछ देश विशेष की सदस्यता के लिए जोर दे रहे हैं। जैसे ब्राजील और अर्जेंटीना को, वहीं चीन तथा रूस चाहते हैं कि सऊदी अरब सदस्य बने। चीन का आग्रह इंडोनेशिया, ईरान को भी सदस्य बनाने के लिए है। पर भारत का आग्रह है कि चयन की प्रक्रिया में कुछ हद तक निष्पक्षता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, जब दक्षिण अफ्रीका एक सदस्य के रूप में योग्य हो गया, तो एक बड़ी अर्थव्यवस्था नाइजीरिया को इससे बाहर क्यों होना चाहिए? गौरतलब है कि साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने से पूर्व समूह का नाम चारों सदस्य देशों ब्राजील, रूस, चीन और इंडिया के पहले अक्षर के नाम पर ब्रिक था और 2010 में साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने पर इसका नाम ब्रिक्स रखा गया था।

अगस्त में होगा फैसला

मंगलवार से शुरू हुई तीन दिवसीय बैठक में इस बात पर मंथन हुआ है कि क्या समूह के तत्काल विस्तार की आवश्यकता है और यदि हां, तो कितने नए सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिए और इसका क्या आधार होना चाहिए। अब शेरपा अपनी रिपोर्ट देंगे जिस पर अगस्त में जोहांसबर्ग में होने वाले ब्रिक्स देशों के 15वें शिखर सम्मेलन में विचार किया जाएगा।

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