चैत्र नवरात्र का पर्व योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों और ‘माँ’ के भक्तों के लिए भक्ति-साधना का अनुपम उपहार लेकर आया। इस पावन अवसर पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुँचे परम पूज्य गुरुवरश्री के शिष्यों-भक्तों के चेहरों में अपार प्रसन्नता झलक रही थी। शक्ति आराधना के इस पर्व के प्रथम दिवस ऋषिवर ने श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में प्रात:कालीन आरतीक्रम सम्पन्न करने के पश्चात् मूलध्वज साधना मंदिर पहुंचे और वहाँ मंदिर के शीर्ष पर नवीन शक्तिध्वजारोहण करवाया। शक्तिध्वज फहराते ही शंखध्वनि और तालियों की गडग़ड़ाहट से नभमंडल गुंजायमान हो उठा।
एक ओर श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में चल रहे ‘माँ’ के गुणगान और मूलध्वज साधना मंदिर पर साधना में लीन भक्तगणों की भक्ति अपने चरम पर थी, वहीं दूसरी ओर पंचमी तिथि को, मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक, धर्मशास्त्रों में प्रतिपादित सोलह संस्कारों में से, सिद्धाश्रम में निवासरत पाँच बालकों का मूलध्वज साधना मंदिर में विधि-विधान के साथ 11वाँ संस्कार ‘यज्ञोपवीत’ का क्रम पूर्ण कराया गया और अष्टमी तिथि पर योगभारती विवाह पद्धति से सात नवयुगलों का सामूहिक विवाह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
चैत्र नवरात्र पर्व पर पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों, सद्गुरुदेव ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के शिष्यों व ‘माँ’ के भक्तों की भीड़ से आश्रम का वातावरण भक्ति से परिपूर्ण व आनन्दमयी हो चला था। भक्तों का आवागमन तथा ‘माँ’ और गुरुवरश्री की आरती, पूजा-आराधना का भावपूर्ण सिलसिला नित्यप्रति की तरह अनवरत रूप से चलता रहा।
सभी श्रद्धालुभक्तजनों ने नवरात्र के प्रारम्भ दिवस 09 अप्रैल से लेकर समापन दिवस 17 अप्रैल तक विशेष अनुष्ठान के रूप में मूलध्वज की परिक्रमा, प्रात: व सायंकाल माता भगवती की आरती, साधना और श्री दुर्गाचालीसा पाठ करने के साथ ही परम पूज्य गुरुवरश्री से कर्ममय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया।
पंचमी तिथि को जनेऊ कार्यक्रम
नवरात्र पर्व की पंचमी तिथि को मूलध्वज साधना मंदिर पर मनुष्यजीवन के सोलह संस्कारों में से 11वाँ संस्कार ‘यज्ञोपवीत’ (जनेऊ) का कार्यक्रम विधि-विधान के साथ सम्पन्न कराया गया। सिद्धाश्रम में निवासरत जिन बालकों को जनेऊ धारण कराया गया, उनमें हरिओम त्रिपाठी जी, मनु द्विवेदी जी, धनंजय चतुर्वेदी जी, कृष्णा द्विवेदी जी और शिव चतुर्वेदी जी का नाम शामिल है।
यह संस्कार तीन परतों वाला सूती धागा (जनेऊ), जिसे यज्ञोपवीत के नाम से जाना जाता है, स्वीकार करके किया जाता है। यज्ञोपवीत की गांठ में ब्रह्मा-विष्णु-शिव का वास बताया गया है और नौ सूत्र तंतु में ओंकार, अग्नि, शेष, चंद्र, पितृ, प्रजापति, अग्नि, सूर्य, विश्वदेव का पूजन बताया गया है।
जनेऊ का अध्यात्मिक महत्त्व
जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वार मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका तात्पर्य है ‘हम मुख से अच्छा बोलें और शुद्ध, सात्विक भोजन करें, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुनें।’ जनेऊ में पाँच गांठ लगाई जाती हैं , इसे प्रवर कहते हैैं, जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पाँच ज्ञानेद्रियों का भी प्रतीक है। प्रवर की संख्या 1, 3 और 5 होती है।
चालीसा पाठ प्रारम्भ दिवस उत्सव
15 अप्रैल 2024 (सप्तमी) को श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ के 27 वर्ष पूर्ण होने और उसके 28वें वर्ष में प्रवेश पर दैनन्दिन आने वाले भक्तों के अलावा सद्गुरुदेव जी महाराज के हज़ारों शिष्य पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम पहुंचे और भावविभोर होकर पूरी तन्मयता के साथ उन्होंने मूलध्वज साधना मंदिर में साधनात्मकक्रमों का लाभ लिया और श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ मंदिर में ‘माँ’ का गुणगान करके आत्मिक आनन्दानुभूति प्राप्त की तथा सायंकालीन बेला में प्रणामक्रम के उपरान्त हलुआ प्रसाद ग्रहण करके जीवन को कृतार्थ किया।
ज्ञातव्य है कि पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में ‘माँ’ के गुणगान का यह अनुष्ठान अनन्तकाल तक चलता रहेगा और इससे मानवता युग-युगान्तर तक लाभान्वित होती रहेंगी।
परिणय सूत्र में बंधे सात नवयुगल
चैत्र नवरात्र पर्व की अष्टमी तिथि पर परम पूज्य गुरुवरश्री के आशीर्वाद से सिद्धाश्रम स्थित मूलध्वज साधना मंदिर में योगभारती विवाह पद्धति से विधि-विधान के साथ सामूहिक वैवाहिक कार्यक्रम, हर्षोल्लास से परिपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ। इसमें 07 नवयुगलों ने अपने माता-पिता एवं परिजनों की सहमति से परिणयसूत्र में बंधकर आजीवन साथ निभाने का वचन एक-दूसरे को दिया।
सभी नवयुगलों ने सर्वप्रथम दाहिने हाथ में संकल्प सामग्री लेकर माता भगवती, परम पूज्य गुरुवरश्री एवं उपस्थित जनसमुदाय को साक्षी मानकर एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में वरण करने का संकल्प किया। तत्पश्चात्, एक-दूसरे को माल्यार्पण करते हुये सभी ने गठबन्धन, मंगलसूत्र एवं सिन्दूर समर्पण की रस्में पूर्ण कीं। तदोपरान्त नवयुगलों ने पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु तत्त्व एवं दृश्य तथा अदृश्य जगत् की स्थापित समस्त शक्तियों को साक्षी मानकर सात फेरे लगाये और आजीवन साथ निभाने का संकल्प लिया। उपर्युक्त कार्यक्रम में शक्तिस्वरूपा बहनों ने सभी नवयुगलों का गठबंधन किया एवं उपहार प्रदान करके सभी को अपना स्नेह एवं आशीर्वाद प्रदान किया। विवाह सम्पन्न होने के बाद आरतीक्रम सम्पन्न किया गया तथा सायंकालीन बेला में सभी नवयुगलों ने परम पूज्य गुरुवरश्री का चरणवन्दन करके सुखद दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया।
स्थापना दिवस पर जिन नवयुगलों का शुभ विवाह सम्पन्न हुआ, उनके नाम इस प्रकार से हैं-
शिवम द्विवेदी जी संग प्रज्ञा मिश्रा जी, मंगल सिंह राजपूत जी संग मृदुला सिंह जी, राजू सेन जी संग रचना सेन जी, शैलेन्द्र मरकाम जी संग कंचन नेताम जी, भाविक सिद्वपुरा जी संग रिचा विश्वकर्मा जी, दीप सिंह चाँचपेले जी संग शिवानी बरेले जी और योगेश सिंह जी संग अमरीता देवी जी।