अखिल भारतीय कार्यकर्ता बैठक का पंचम चरण, दिनांक 12 मई 2022 सद्गुरुदेव जी महाराज के चिन्तन, निर्देशन के पश्चात् भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन सिद्धाश्रमरत्न संध्या शुक्ला जी ने उपस्थित गुरुभाई-बहनों, कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा-
”जिनके दर्शनमात्र से मन के विकार दूर होजाते हैं और जिनकी कृपा से जीवन में परिवर्तन आना शुरु होजाता है, उन परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की महिमा का वर्णन सहज नहीं है। किसी भी व्यक्ति के मन में यदि थोड़ी सी भी धार्मिक भावना है और जो पूजा-पाठ करता है, तप करता है, तीर्थयात्रा में जाता है, तो गौरवान्वित रहता है कि मैं धर्मपथ पर चलने वाला हूँ। मगर, हमारे धर्मशास्त्र, वेद-पुराणों ने तो परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य निरूपित किया है। हज़ारों वर्ष पहले वेदव्यास जी कह चुके हैं कि ‘परोपकार से बड़ा पुण्य इस धरती पर कोई नहीं है और दूसरों को पीड़ा देने से बड़ा पाप इस धरती पर कोई नहीं है।’
गर्व होना चाहिए कि परम पूज्य गुरुवरश्री हमें सभी वेद-शास्त्रों में समाहित ज्ञान का सार बता चुके हैं। गुरुवर ने बता दिया है कि यदि परोपकार करना है, तो मानवीयमूल्यों की स्थापना करो, लोगों के जीवन में परिवर्तन लाओ, नशे-मांस से मुक्त करके लोगों के जीवन से विकारों को दूर कर दो। गुरुवरश्री ने मानवता की सेवा, धर्म की रक्षा और राष्ट्र की रक्षा के लिए तीन धाराएं दी हैं, जिनके माध्यम से समाज में व्याप्त विषमताओं को समाप्त किया जा सकता है। गुरुवर ने कहा है कि आगे चलकर तीनों धाराएं समाज का नेतृत्व करेंगी। हमारे गुरुजी का जीवन तीन विचारों पर आधारित है- संकल्प, त्याग और पुरुषार्थ।
संकल्प:- संकल्प ऐसा कि इस धरा पर माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा के मूलस्वरूप की स्थापना का संकल्प, घर-घर में नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान्, चेतनावान्, पुरुषार्थी और परोपकारी व्यक्तित्त्व की स्थापना का संकल्प, घर-घर में ‘माँ’ की ज्योति जलाने का संकल्प और इन संकल्पों पर गुरुवर ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। हमें गुरुवर के संकल्प को अपना संकल्प बनाना है और यदि ऐसा कर पाए, तो हमारे देश की कीर्ति पुन: एक बार पूरे विश्व में जगमगा उठेगी।
त्याग:- हमने इतिहास में पढ़ा है कि महर्षि दधीचि ने समाज की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया था, तात्पर्य अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था और उसी परम्परा का निर्वहन ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज कर रहे हैं। आपने समाज को दिशा देने के लिए त्याग की पराकाष्ठा को पार किया है और अपना सुख त्याग करके, शीर्ष से शून्य में आकर अँधियारी में बस गए तथा उस अँधियारी को इतना चैतन्य, इतना प्रकाशवान बना दिया कि हज़ारों-हज़ार वर्षों तक लोग यहाँ से ऊर्जा प्राप्त करते रहेंगे। ऐसा त्याग ऋषि ही कर सकते हैं, यह साधारण मनुष्यों के वश की बात नहीं।
पुरुषार्थ:- पुरुषार्थ ऐसा कि गर्मी हो, ठंडी हो, बरसात हो, समाजकल्याण के लिए छोटा सा छोटा कार्य अपने हाथों से किया गया हो। जिन्होंने ‘माँ’ के दर्शन प्राप्त किए हों और जिनकी कुण्डलिनीशक्ति पूर्णरूपेण जाग्रत् हो तथा उस शिखर को प्राप्त किया हो, जहाँ तक किसी का पहुँचना असम्भव है, उन गुरुवर ने अपना पूरा जीवन समाज के कल्याण हेतु, अपने शिष्यों के कल्याण हेतु समर्पित कर दिया है। तो, क्या शिष्यों का दायित्व नहीं बनता कि उनके गुरु जो ज्ञान दे रहे हैं, उसे ग्रहण करके कत्र्तव्यपथ पर बढ़ चलें? परम पूज्य गुरुवर ने जो महाशक्ति शंखनाद का संकल्प लिया है, वह साधारण नहीं है। गुरुवर ने जो 108 महाशक्तियज्ञ सम्पन्न करने का संकल्प लिया है, वह साधारण नहीं है, जबकि समाज के बीच आठ महाशक्तियज्ञ करके समाज को यज्ञों की शक्ति का अहसास कराया जा चुका है और शेष 100 यज्ञ इसी सिद्धाश्रम में पूरे होने हैं। तो, जरा सोचिए कि जब यज्ञों में एक-एक आहुति पड़ेगी, तब समाज में कितना बड़ा परिवर्तन आयेगा? अत: यदि यज्ञों में एक आहुति डालने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो संकल्प लें कि नशे-मांस से मुक्त चरित्रवान् जीवन जीते हुए तीनों धाराओं के प्रति आजीवन समर्पित रहेंगे।”