योग को पूर्णत्व के रूप में समझना चाहिए कि योग ही शक्ति है और शक्ति ही योग है। जड़-चेतन-जीव तथा इस सम्पूर्ण सृष्टि का और इस सृष्टि की जननी माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा का सम्बन्ध ही योग है। सृष्टि का प्रारम्भ ही जगज्जननी ने योग बल से किया है। अत: जब से यह सृष्टि है, तभी से योग है।
योग की मूल शक्ति माता आदिशक्ति जगज्जननी जगदम्बा हैं, उसके देव ब्रह्मा-विष्णु-महेश हैं और उसके ऋषिश्रेष्ठ स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज हैं। सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अब तक हर काल परिस्थिति में योग किसी न किसी रूप में मानव जीवन में समाहित रहा है। अनेकों ऋषि-मुनियों ने योग को अपने-अपने तरीके से स्थापित किया है, मगर उसका मूल स्वरूप लगभग एक समान ही रहा है। महर्षि पतंजलि ने योग को व्यापकता प्रदान की, जो वर्तमान समय में सभी प्रक्रियाओं का मूल लक्ष्य रहा है। कुण्डलिनी के सातों चक्रों को जाग्रत् करके तथा आत्मचेतना को प्राप्त करके आत्मा की जननी मूल सत्ता से एकाकार करना योग है। योग का स्वरूप व्यापक है, मगर उसके मूल सार को अष्टांग योग में पिरोने का प्रयास किया गया है, जो प्रवाह के रूप में जन-जन तक पहुंच रहा है।
वर्तमान काल में मनुष्य जिन विषम परिस्थितियों में घिर चुका है, उनमें अष्टांग योग सबसे सशक्त माध्यम है। इक्कीसवीं सदी को यदि योग व अध्यात्म की सदी कहा जाय, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में सैकड़ों धार्मिक संस्थानों से योग का प्रवाह जनमानस तक पहुंच रहा है।
आवश्यक सावधानियां
योग पथ पर चलने के लिए योग के प्रति पूर्ण निष्ठा, विश्वास और समर्पण की आवश्यकता होती है। स्वयं के द्वारा स्वयं के प्रति वचनबद्धता के साथ ही एक योग्य चेतनावान् गुरु की आवश्यकता होती है, जो योग में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे मनुष्य की आयु व उसकी शारीरिक क्षमता और स्वास्थ्य के अनुसार उचित मार्गदर्शन कर सके।
योगासनों के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें-
- आसन के लिए समय का महत्त्व सबसे अधिक होता है। आसन ऐसे समय पर करें, जब मौसम सामान्य रूप से हल्का ठण्डा हो। अत्यधिक गर्म वातावरण में आसन नहीं करना चाहिए। सुबह-शाम का समय आसन करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है।
- आसन करते समय बहुत कसे और तंग वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं। वस्त्र ऐसे हों, जिन्हें पहनकर आसन करने में असुविधा न हो।
- आसन करने के समय पेट अधिक से अधिक खाली हो, तो ज्यादा अच्छा होता है।
- आसन के लिए समतल भूमि हो व बिछौना जैसे-दरी, चद्दर या हल्के पतले गद्दे, कम्बल उपयुक्त होते हैं।
- आसन अपने अंदर पूर्ण प्रसन्नता व चैतन्यता का भाव लेकर करना चाहिए।
- किसी भी आसन को सीखने के लिए धैर्यता के साथ नित्यप्रति धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। हठपूर्वक एक दिन में ही किसी भी आसन को करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
- आसन करते समय बीच में बार-बार पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। बहुत आवश्यकता महसूस होने पर थोड़ी मात्रा में जल लिया जा सकता है।
- आसन प्रारम्भ करने से पहले नाक साफ कर लेना चाहिए व मलमूत्र आदि का त्याग कर लेना चाहिए।
- आसन के प्रारम्भ में कुछ सहज प्राणायाम की क्रियायें कर लेना चाहिए व सरल आसनों से शुरूआत करना चाहिए, जिससे शरीर में प्राणवायु प्रभावक होकर शारीरिक चैतन्यता आजाय। उसके बाद कोई भी आसन किये जा सकते हैं।
- आसन क्रोध, आवेश, तनाव व ज्यादा दु:ख-कष्ट की स्थिति में नहीं करने चाहिएं। योग संतुलन बनाकर शारीरिक क्षमता के अनुसार ही करें।
- बुखार आदि किसी विशेष तकलीफ में आसन न करें।
- किन्हीं कठिन रोगों से ग्रसित होने पर किसी योग्य चिकित्सक के परामर्श के बाद ही योगासन प्रारम्भ करना चाहिए।
- योगासन करते समय निरर्थक बातचीत नहीं करना चाहिए। जो आसन कर रहे हों, उसी में मन की एकाग्रता रखने से आसन फलदायी बन जाते हैं।
- योगासन शौचक्रिया आदि से निवृत्त होकर स्नानादि करके करने में ज्यादा हल्कापन महसूस होता है। आवश्यकतानुसार स्नान करने से पहले भी कर सकते हैं।
- आसन किसी उद्यान, खुले वातावरण या किसी स्वच्छ जगह में करें, जहां वायु का अधिक से अधिक आना-जाना हो सके।
- योगासन पूर्ण करने के बाद कम से कम 15 मिनट तक कोई भोजन न करें, तो ज्यादा अच्छा है। योगासन के वक्त यदि अत्यधिक पसीना आ रहा हो, तो तुरंत स्नान न करें।
- गर्भवती महिलायें यदि तीन माह की अवस्था हो गई हो, तो आसन बिल्कुल न करें। किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में सहज अवस्था में किये जाने वाले आसनों को कर सकती हैं।
- यदि किसी के पेट, किडनी, ब्रेन, हार्ट या कोई भी बड़ा ऑपरेशन हुआ हो, तो छ: माह तक योगासन न करें। उसके बाद चिकित्सक की सलाह लेकर योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करें।
- एक साल से कम उम्र के बच्चों को आसन बिल्कुल भी न करवायें। 1-2 साल के बच्चों को सावधानीपूर्वक सरल आसन योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करायें।