संकल्प शक्ति। पर्यावरण के साथ हो रहे खिलवाड़ के कारण पृथ्वी पर जीवन की रक्षा कर रही ओजोन परत को खतरा उत्पन्न हो गया है, जिसका मानवजीवन ही नहीं, बल्कि धरती के समस्त जीवों को इसका दुष्परिणाम भोगना पड़ेगा।
ज़हरीली गैसों के कारण ओजोन परत में छिद्र हो गया है, जिसे भरने के लिए कई दशकों से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। ओजोन परत का एक बड़ा छिद्र अंटार्कटिका के ऊपर स्थित है, जो पहली बार 1985 में ‘हेली शोध केंद्र में देखा गया था। एक शोध के अनुसार वर्ष 1960 के मुकाबले इस क्षेत्र में ओजोन की मात्रा चालीस फीसदी तक कम हो चुकी है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले लगभग सौ वर्षों से ओजोन परत मानवनिर्मित रसायनों के द्वारा क्षतिग्रस्त हो रही है और इन रसायनों में क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। क्लोरो फ्लोरो कार्बन कई कारणों से ओजोन परत में विलीन होकर उसे बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण वैज्ञानिकों का कहना है कि क्लोरो फ्लोरो कार्बन का सीधे मानवशरीर पर कोई असर नहीं होता, लेकिन अगर यह गैस रिसकर वातावरण में मिल जाए, तो अत्यधिक नुकसानदायक हो सकती है।
जब यह गैस स्थानीय स्तर पर घुलकर नष्ट नहीं होती, तो बहुत तेजी से ऊपर उठती है और ओजोन परत के जिस हिस्से से टकराती है, वह कमज़ोर होजाता है। इसी कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक कार साल भर में 4.5 मीट्रिक टन कार्बन का उत्सर्जन करती है, वहीं ग्रीन हाऊस का &.9 फीसदी उत्सर्जन एअरकंडीशनर से हो रहा है। यानी वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइआक्साइड सहित जितनी भी ग्रीन हाऊस गैसें उत्सर्जित हो रही हैं, उनमें &.9 फीसदी हिस्सा एसी का है। इसके अलावा डियोडरेंट में इस्तेमाल हो रही एसएफ-6 गैस कार्बन डाइआक्साइड से बीस से तीस हज़ार गुना घातक है।
समस्या को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका
ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने में सुपरसोनिक जेट विमानों से निकलने वाली नाइट्रोजन आक्साइड, काला धुआं तथा अनेक प्रकार के ख़्ातरनाक रसायन उगलते उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले क्लोरो फ्लोरो कार्बन, हैलोजन तथा मिथाइल ब्रोमाइड जैसे रसायनों से निकलने वाले ब्रोमीन और क्लोसेन जैसे रासायनिक प्रदूषक, रेफ्रिजरेटर तथा अन्य सभी वातानुकूलित उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली गैसें बड़ी भूमिका निभा रही हैं। धरती पर अंधाधुंध बढ़ता जीवाश्म र्इंधन का उपयोग भी ओजोन परत की समस्या बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
मांट्रियल समझौते के बाद
दुनिया के अधिकांश देश ओजोन परत के संरक्षण के प्रति मांट्रियल समझौते के बाद संवेदनशील हुए हैं और ओजोन को बचाने हेतु रसायनों और ख़्ातरनाक गैसों के उत्सर्जन को कम करने के प्रयास जारी हैं, लेकिन इस दिशा में दुनिया को अभी बहुत कुछ करना पड़ेगा। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत को जो क्षति पहुँच चुकी है, उसकी पूर्ति कर पाना तो मुश्किल है, लेकिन आगे की क्षति को रोका जा सकता है।