श्री वामन, भगवान् विष्णु के अवतार हंै। त्रेतायुग के प्रारम्भ में भगवान् विष्णु वामन रूप में देवी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। यह पहले ऐसे अवतार थे, जो मानव रूप में प्रकट हुए। दक्षिण भारत में इनके मूल नाम उपेन्द्र से जाना जाता है। इनके पिता प्रजापति कश्यप थे और माता अदिति थीं।
कथा के अनुसार भगवान् विष्णु ने देवलोक में इन्द्र का अधिकार पुन: स्थापित करने के लिए यह अवतार लिया था। देवलोक को असुर राजा बलि ने हड़प लिया था। राजा बलि, विरोचन के पुत्र तथा भक्त प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु और महादानी असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा शक्ति के माध्यम से बलि ने त्रिलोक पर अधिपत्य पा लिया था और अपने महादानी होने का उन्हें अहंकार था। भगवान् वामन, एक बौने ब्राह्मण के वेष में बलि के पास गये और उनसे अपने रहने के लिए तीन पग भूमि देने का आग्रह किया। उनके हाथ में एक लकड़ी का छत्र (छाता) था। गुरु शुक्राचार्य के चेताने पर भी बलि ने वामन को वचन दे डाला।
भगवान् वामन ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही पग में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया। दूसरे पग में देवलोक नाप लिया। तीसरे पग के लिए कोई भूमि बची ही नहीं। वचन के पक्के बली ने तब वामन को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। बलि की वचनबद्धता से भगवान् वामन अति प्रसन्न हुये तथा बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा पग बलि के सिर में रखा, जिसके फलस्वरूप बलि पाताल लोक में पहुँच गये।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार से जीवन में सबकुछ नष्ट होजाता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर है।