भारत का संविधान नि:संदेह ही वैश्विक लोकतंत्र की सर्वोच्च उपलब्धि है, परन्तु इसका पूर्ण लाभ तभी मिल सकता है, जब नागरिकों के द्वारा संविधान के सभी अंगों को ध्यानपूर्वक समझते हूए उन्हें आत्मसात कर लिया जाए। संविधान में रीतियों के पालन का अधिकार है, कुरीतियों का नहीं, प्रथा पालन का अधिकार है, कुप्रथा का नहीं, अपनी संस्कृति, सभ्यता का अनुसरण करने का अधिकार है, लेकिन मनचाहे विचरण का अधिकार नहीं है।
संविधान में मूल अधिकारों की व्याख्या होने से नागरिक अपने अधिकारों के प्रति ज़ागरूक तो हो गए, परन्तु कर्तव्यों के प्रति उदासीन हैं और कत्र्तव्यों के प्रति सजग करने के लिए ही धर्मसम्राट् युग चेतना पुरुष सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने भगवती मानव कल्याण संगठन, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम और भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के रूप में तीन धाराओं का सृजन किया है।
हमें नागरिक के रूप में उन कत्र्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक करना चाहिए, जिसकी हमारा भारत देश, हमारी संस्कृति हमसे आशा रखती है। किसी कार्य को करने के दायित्व को कर्तव्य कहते हैं। ऐसे बुनियादी मानवीय कर्तव्य, जो मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा तथा स्वयं के साथ अपने देश की प्रगति के लिए आवश्यक हंै, का निर्वहन करने चाहिए।
संविधान में वर्णित मूल कत्र्तव्य
भारतीय संविधान में वर्णित 11 मूल कर्तव्य वह पथ प्रशस्त करते हैं, जिस पर चलकर हम व्यक्ति से नागरिक बनते हैं। संसद ने सन् 1976 में 42वें संविधान संसोधन के द्वारा एक नए भाग 4 (क) को जोड़ा, जिसमें संविधान के मूल 10 कर्तव्यों के साथ आज वर्तमान में कुल 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है, जो इस प्रकार है-
1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें। 2. स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें। 3. भारत की संप्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें। 4. देश की रक्षा करें और आवाहन किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें। 5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भातृत्व की भावना का निर्माण करें, जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करें, जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हंै। 6. भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परम्परा के महत्त्व को समझें और उसका परिरक्षण करेंं। 7. प्राकृतिक पर्यावरण, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, इनकी रक्षा और संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखेंं। 8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें। 9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें।10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढऩे का सतत् प्रयास करें, जिससे राष्ट्र निरंतर प्रगति के पथ पर बढ़ता रहे।
इसी के साथ संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2002 के तहत् 11वें मौलिक कर्तव्य को भी जोड़ा गया कि यदि (वह नागरिक) माता-पिता या संरक्षक हंै, तो 06 वर्ष से 14 वर्ष तक आयु वाले अपने यथास्थिति बालक या प्रतिपालक के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करेंं।
राष्ट्रहित के लिए बने कानून
मौलिक कर्तव्य, नागरिकों में मानव व्यवहार के प्रति आदर्श तो स्थापित करते हंै, परन्तु आलोचना के लिए नीति-निर्देशक सिद्धान्तों की तरह मौलिक कर्तव्यों के हनन पर कोई $कानूनी प्रावधान परिभाषित नही है। आज 21वीं भौतिकवादी सदी में समसामयिक राष्ट्रीय व वैश्विक वातावरण को देखते हुए, जहाँ कर्तव्यपक्ष कमज़ोर पड़ रहा है, तो उसे कहीं न कहीं राष्ट्र के हित के लिए सरकारों को $कानून बनाकर अमलीजामा पहनाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा
26 अक्टूबर 2005 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय की सात जजों की खण्डपीठ के द्वारा एक लम्बी सुनवाई के बाद दिए गए 66 पन्नों के एक फैसले की तरफ ध्यान आकर्षित करना आवश्यक है, जिसमें वर्ष 2004 से सितम्बर 2005 तक अखिल भारतीय गौसंघ, अहिंसा आर्मी ट्रस्ट व गुजरात सरकार की अनेक अपील व दलीलों को सुनते हुए गौहत्या व बूचडख़ानों से संबंधित मामले की सुनवाई की। इसमें मुस्लिमपक्ष की सभी दलीलें सुनी गईं और विपक्ष के द्वारा मुस्लिम सम्प्रदाय के सभी धर्मग्रंथों व उनके धार्मिक नेताओं व शासकों के द्वारा समय-समय पर गौरक्षा के बारे में दिए गए विचारों, वक्तव्यों के प्रमाण प्रतीक प्रस्तुत किए गए। जिसके उपरान्त माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 48 में गोकशी रोकने की सरकार की जि़म्मेदारी का भी हवाला दिया।
कोई भी धर्म कू्ररता का पाठ नहीं पढ़ाता
न्यायालय ने गुजरात बनाम मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाब जमात व अन्य के बारे में दिए गए अपने इस फैसले के पैराग्राफ 67 में कहा था कि भारत के हर नागरिक और राज्य को जीवित प्राणी के प्रति सहृदय होना चाहिए, उसके प्रति दया की भावना होनी चाहिए। जीवित प्राणियों के प्रति सहृदयता की अवधारणा संविधान के अनुच्छेद 51ए जी में दी गई है, जो कि भारत की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित है व दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई भी धर्म या पवित्र ग्रन्थ कू्ररता का पाठ नहीं पढ़ाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत में गाय को काटना संवैधानिक पाप है, धार्मिक पाप है और गौरक्षा करना, गौ-संवर्धन करना देश के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है।
भारत के सभी राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारों की जि़म्मेदारी है कि वे गाय का कत्ल अपन-अपने राज्य में बन्द करवायें। यदि किसी राज्य में गाय का कत्ल होता है, तो यह उस राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल व चीफ सेक्रेटरी के साथ-साथ आम नागरिकों की भी जि़म्मेदारी है।
अभी तक मौलिक कत्र्तव्यों में नहीं जोड़ा गया
दुर्भाग्य की बात है कि इस फैसले के उपरान्त अब तक कार्यपालिका, विधानपालिका व चुनी हुई सरकारों की जन-जीव कल्याणकारी संस्कृति के प्रति जड़ता, अकर्मण्यता के कारण आज भी संविधान में संशोधन करके 12वें मौलिक कर्तव्य में गौरक्षा को लिखित रूप में संविधान में नहीं जोड़ा गया है। 2005 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से अब तक के लम्बे अरसे में इस मौलिक कर्तव्य के प्रति जनजागरण व जनचेतना के अभाव के कारण आज वर्तमान समसामयिक स्थिति में गौमाता की दुर्दशा व गौकशी के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए आज इसे केवल मौलिक कर्तव्य के रूप तक ही सीमित न रखते हुए संविधान में गौहत्या के विरुद्ध एक सशक्त $कानून बनाने की आवश्यकता है।
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की माँग है
जातिभेद-छुआछुत से रहित सद्भावनापूर्ण चेतनावान् समाज के निर्माण और राजनीतिक मूल्यों व आदर्श आचार संहिता की विचारधारा को लेकर कार्यरत भारतीय शक्ति चेतना पार्टी, भारतीय संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए भारत सरकार से गौहत्या के विरुद्ध सशक्त $कानून बनाए जाने की मांग करती है कि गौरक्षा को संविधान के 12वें मौलिक कत्र्तव्य में जोड़ा जाए।
सदियों से माता के रूप में पूजित गौमाताओं की रक्षा व संवर्धन से निश्चित है कि देश का अध्यात्मिक और भौतिक विकास उत्तरोत्तर गति से बढ़ेगा और हम युग परिवर्तन एवं समृद्धिशाली भारतनिर्माण के पथ पर एक पायदान और बढ़ेंगे।
अनीता, चरखी दादरी
राष्ट्रीय सचिव- भारतीय शक्ति चेतना पार्टी