नई दिल्ली। भारतीय चुनाव आयोग के एक महत्त्वपूर्ण फैसले ने शुक्रवार को महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। पिछले साल शिवसेना में हुए विभाजन से पार्टी के दो गुटों में विभक्त होने के बाद आयोग ने नाम और चुनाव चिह्न पर अधिकार को लेकर अपना फैसला सुना दिया। एकनाथ शिंदे खेमा के पास अधिकारिक नाम शिवसेना और पार्टी का चुनाव चिह्न ‘धनुष-तीर बरकरार रहेगा। जबकि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले गुट के पास अंतरिम नाम शिवसेना यूबीटी और चुनाव चिन्ह जलता हुआ मशाल रहेगा।
यह कैसे तय करता है चुनाव आयोग?
विधायिका के बाहर एक राजनीतिक दल में विभाजन के सवाल पर, सिंबल ऑर्डर, 1968 के पैरा 15 में कहा गया है कि जब आयोग संतुष्ट होजाता है कि एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह हैं, जिनमें से प्रत्येक खुद को वास्तविक पार्टी होने का दावा करता है, तब आयोग मामले के सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों तथा उनके प्रतिनिधियों को सुनने के बाद यह तय कर सकता है कि उनमें से ऐसा एक प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह या ऐसा कोई भी प्रतिद्वंद्वी वर्ग या समूह मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं है और आयोग का निर्णय ऐसे सभी प्रतिद्वंद्वी वर्गों या समूहों पर बाध्यकारी होगा।