Tuesday, November 26, 2024
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पांडवों से जुड़ा है निष्कलंक महादेव मंदिर का इतिहास

भारत में कई ऐसे मंदिर हैं, जो आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं। ऐसा ही एक मंदिर है गुजरात के भावनगर के पास कोलियाक में स्थित निष्कलंक महादेव मंदिर। यहां स्थापित पाँचों शिवलिंग को स्वयंभू माना गया है। अर्थात् यह शिवलिंग स्वय् ही प्रकट हुए हैं। इस मंदिर का इतिहास महाभारतकाल से जुड़े हुए हैं।

विदित हो कि निष्कलंक महादेव मंदिर में एक चौकोर मंच पर पाँच अलग-अलग स्वयंभू शिवलिंग हैं और प्रत्येक के सामने एक नंदी की मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर समुद्र में उच्च ज्वार के दौरान डूब जाता है और कम ज्वार के दौरान पूर्ण भव्यता के साथ उभर आता है। उच्च ज्वार के दौरान, शिवलिंग जलमग्न हो जाते हैं और इस दौरान केवल ध्वज और एक स्तंभ दिखाई देता है।  

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को पांडवों के द्वारा बनवाया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसे बनवाने का कारण यह था कि पांडवों के द्वारा कुरुक्षेत्र युद्ध में सभी कौरवों को मारने के बाद, अपने आपको पापी महसूस करने लगे। अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए, पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण से परामर्श किया, जिन्होंने उन्हें एक काला झंडा और एक काली गाय सौंपी और उनसे पीछा करने को कहा और कहा कि जब ध्वज और गाय दोनों सफेद हो जाएंगे, तो उन सभी के पाप माफ हो जाएंगे। इसके बाद भगवान् कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव से क्षमा मांगने के लिए भी कहा।

पांडवों ने गाय का हर जगह पीछा किया, जहां भी गाय उन्हें ले गई और कई वर्षों तक विभिन्न स्थानों पर ध्वज को मान्यता दी, फिर भी रंग नहीं बदला। अंत में जब वे कोलियाक समुद्र तट पर पहुंचे, तो दोनों  सफेद हो गए। वहां पांडवों ने भगवान् शिव का ध्यान किया और अपने द्वारा किए गए पापों के लिए क्षमा मांगी। उनकी प्रार्थनाओं से प्रसन्न  होकर भगवान् शिव ने प्रत्येक भाई को शिवलिंग रूप में दर्शन दिए। कहा जाता है कि यह पाँचों शिवलिंग स्वयंभू हैं। इन सभी शिवलिंग के सामने नंदी की मूर्ति भी थी। पांडवों ने अमावस्या की रात को इन पाँचों लिंगम को चौकोर स्थल पर स्थापित किया और इसे निष्कलंक महादेव नाम दिया, जिसका अर्थ होता है बेदाग, स्वच्छ और निर्दोष होना।

हर वर्ष लगता है मेला

इस स्थान पर भादरवी नाम से प्रसिद्ध मेला श्रावण माह की अमावस्या की रात को आयोजित किया जाता है। मंदिर उत्सव की शुरुआत भावनगर के महाराज के द्वारा झंडा फहराकर की जाती है। जहां यह झंडा 364 दिनों तक खुला रहता है और अगले मंदिर उत्सव के दौरान बदला जाता है।

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