Wednesday, November 27, 2024
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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में एक साथ विराजित हैं शिव-पार्वती

12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन। ये मंदिर आंध्रप्रदेश के कृष्णा जि़ले में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल (श्रीपर्वत) पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। माना जाता है कि जो भक्त इस मंदिर में शिव की पूजा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से मिलने वाले पुण्य के बराबर पुण्य मिलता है।  

 मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कथा शिव-पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी से जुड़ी है। जब गणेश जी और कार्तिकेय स्वामी विवाह योग्य हुए तो एक दिन शिव जी और देवी पार्वती ने सोचा कि अब इन दोनों पुत्रों का विवाह करा देना चाहिए।

दोनों पुत्रों के विवाह का विचार आने के बाद शिव-पार्वती ने कार्तिकेय स्वामी और गणेश जी को बुलाया। शिव जी ने दोनों पुत्रों से कहा कि आप दोनों में से जो इस संसार की परिक्रमा करके पहले लौट आएगा, हम उसका विवाह पहले कराएंगे।

शिव जी की शर्त सुनते ही कार्तिकेय स्वामी अपने वाहन मोर पर बैठकर तुरंत उड़ गए। गणेश जी अपने वाहन चूहे पर बैठे और कुछ सोचने के बाद उन्होंने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर ली। गणेश जी ने शिव-पार्वती से कहा कि मेरे लिए तो आप दोनों ही पूरा संसार हैं।

गणेश जी की इस बात से शिव-पार्वती बहुत प्रसन्न हो गए। उन्होंने गणेश जी का विवाह करा दिया। इसके कुछ समय बाद कार्तिकेय स्वामी संसार की परिक्रमा करके लौट आए। उन्होंने देखा कि गणेश जी का तो विवाह हो गया है।

कार्तिकेय स्वामी को पूरी बात मालूम हुई तो वे क्रोधित हो गए। उन्हें लगा कि माता-पिता यानी शिव-पार्वती ने उनके साथ सही नहीं किया है। इस बात पर क्रोधित होकर कार्तिकेय स्वामी ने कैलाश पर्वत छोड़ दिया और क्रौंच पर्वत पर चले गए। ये क्रौंच पर्वत दक्षिण भारत में कृष्णा जि़ले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है, इसे श्रीशैल और श्रीपर्वत भी कहा जाता है।

श्रीशैल पर्वत पहुंचे शिव-पार्वती

नाराज़ कार्तिकेय को मनाने के लिए शिव जी और देवी पार्वती ने बहुत कोशिश की, लेकिन कार्तिकेय नहीं माने। जब शिव-पार्वती को ये लगा कि कार्तिकेय अब कैलाश लौटकर नहीं आएंगे, तो उन्होंने तय कि अब से वे ही समय-समय पर कार्तिकेय से मिलने जाएंगे। माना जाता है कि इसके बाद से शिव-पार्वती वेष बदलकर कार्तिकेय को देखने पहुंचते थे। जब ये बात कार्तिकेय को मालूम हुई तो उन्होंने वहां एक शिवलिंग स्थापित किया, जिसमें शिव-पार्वती ज्योति रूप में विराजित हो गए। एक मान्यता ये भी है कि हर अमावस्या पर शिव जी और पूर्णिमा पर देवी पार्वती कार्तिकेय से मिलने श्रीपर्वत पर आती हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में मल्लिका का अर्थ है पार्वती और अर्जुन का अर्थ है शिव।

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