Sunday, November 24, 2024
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रेबीज नामक संक्रमण से हर साल होती है लाखों लोगों की मौत

नई दिल्ली।  रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जिसे शुरुआत में रोका जा सकता है। मगर एक बार संक्रमण दिमाग तक पहुंच जाए, तो मरीज को बचा पाना लगभग असंभव है। इस बीमारी को वैक्सीन के ज़रिए रोका जा सकता है। ये वैक्सीन हर जगह आसानी से उपलब्ध हैं। इसके बावजूद रेबीज के कारण हर साल दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत होती है। डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में रेबीज को लेकर फैक्ट शीट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि रेबीज से होने वाली 40 प्रतिशत से ज़्यादा मौत 15 साल से कम उम्र के बच्चों की होती है। रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जो कुत्ते, बंदर, बिल्ली आदि जानवरों के काटने से फैलती है। ये सभी जानवर ऐसे हैं, जो घरों में सबसे ज़्यादा पाले जाते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि रेबीज के 99 प्रतिशत मामले पालतू कुत्तों के काटने से फैलते हैं।

जानलेवा बीमारी है रेबीज

रेबीज 100 प्रतिशत जानलेवा बीमारी है और अगर किसी व्यक्ति को रेबीज होजाता है, तो उसे बचा पाना लगभग असंभव है। इसके बावज़ूद लोग इस बीमारी को लेकर लापरवाही बरतते हैं। इसका बड़ा कारण ये हो सकता है कि लोगों को रेबीज के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।  

रेबीज के लक्षण  

शुरुआती स्टेज में जानवर के काटे हुए स्थान पर व्यक्ति को झुनझुनी, चुभन और जलन जैसा महसूस होता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार रेबीज दो तरह के हो सकते हैं। पहला है फ्यूरियस रेबीज जो सबसे कॉमन है। इस प्रकार के रेबीज में जैसे-जैसे व्यक्ति के दिमाग पर रेबीज वायरस अटैक करता जाता है, उसके व्यवहार में कुछ-कुछ परिवर्तन आने लगते हैं, जैसे- हिंसक व्यवहार, भ्रम की स्थिति, आवाज में परिवर्तन, पानी से डर लगना, ठंडी हवा से डर लगना आदि। आमतौर पर इन लक्षणों के उभरने के कुछ सप्ताह के अंदर ही कार्डियो रेस्पिरेटरी अरेस्ट के कारण मरीज की मौत होजाती है। वहीं दूसरी तरह का रेबीज है पैरालाइटिक रेबीज, इस प्रकार के रेबीज में ये वायरस धीरे-धीरे असर करता है। ये 20 प्रतिशत मामलों में ही देखने को मिलता है। इस प्रकार के रेबीज में मरीज का शरीर सबसे पहले जानवर के काटने वाली जगह पर लकवाग्रस्त होता है, इसके बाद धीरे-धीरे पूरा शरीर लकवाग्रस्त होजाता है। एक वक्त के बाद कोमा में जाकर मरीज की मौत होजाती है। 

रेबीज से बचने के लिए क्या करें?

रेबीज से बचने के उपाय बेहद आसान हैं। घर में अगर पालतू जानवर (खासकर कुत्ता, बिल्ली आदि) हैं, तो उन्हें समय-समय पर एंटी-रेबीज का इंजेक्शन लगवाते रहें। शरीर में कहीं भी घाव है या स्किन कटी हुई है, तो देखें कि पालतू जानवर उसे न चाटे। कुत्ते, बिल्ली, बंदर या रेबीज फैलाने वाले अन्य जानवर के काटने या खरोंच मारने पर सबसे पहले घाव को अच्छी तरह साबुन से धोएं और फिर जल्द से जल्द टिटनेस और एंटी-रेबीज इंजेक्शन ज़रूर लगवाएं।

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