झांसी, संकल्प शक्ति। श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ कोई साधारण अनुष्ठान नहीं है। यदि आप अपने अवगुणों को त्यागना चाहते हैं, तो इस अनुष्ठान मे संकल्प लेकर अपने अवगुणों को त्याग सकते हैं और जैसे ही आप अपने अवगुणों का त्याग करेंगे, उसी समय से आप माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की कृपा के पात्र बन जायेंगे।
दिनांक 29-30 जुलाई 2023 को सिद्धेश्वर शक्तिपीठ, झांसी (म.प्र.) में आयोजित 24 घंटे के श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ के समापन अवसर पर भगवती मानव कल्याण संगठन के केन्द्रीय महासचिव सिद्धाश्रमरत्न अजय अवस्थी जी ने वीरांगना लक्ष्मीबाई की धरती को नमन करते हुए कहा कि ”आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता मूल सत्य है। सद्गुरुदेव भगवान् श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का चिन्तन है कि आत्मा की अमरता और कर्म की प्रधानता को कोई झुठला नहीं सकता। आपके अन्दर जो आत्मा विद्यमान है वह अजर-अमर-अविनाशी है। आप जो भी कार्य करते हैं, उसका लेखा-जोखा उसमें अंकित होजाता है और उसी के अनुरूप आपको फल प्राप्त होता है। अत: हमेशा अच्छा कार्य करें, जिससे आपका जीवन सदा सुख-शांति-समृद्धि से परिपूर्ण रहे।
अध्यात्मिक कार्य करने से हमको साधना का मौका मिलता है। साधना का मतलब है अपने आपको साधना, अपनी चंचलता को साधना और साधना की प्रथम सीढ़ी है आहार और संयम। आपका आहार शुद्ध व सात्विक होनी चाहिए। इसी तरह संयमित जीवन जिएं, किसी भी स्थिति-परिस्थिति में अपना संयम न खोएं। संयमित व्यक्ति ही सफलता के उच्चशिखर पर पहुँच सकता है। साधक बनने के लिए अहंकार का त्याग भी बहुत ज़रूरी है। ‘माँ’ से भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति के बाद, जब भी और कुछ मांगो तो यही मांगो कि हे ‘माँ’ मुझे अहंकार से मुक्त कर दो और मुझमें इतनी विनम्रता आजाए कि मैं आपकी भक्ति में लीन रह सकूं। इस बात का ध्यान रखें कि भौतिक जगत् के पीछे अध्यात्मिक जगत् नहीं चलता है, बल्कि अध्यात्मिक जगत् के पीछे भौतिक जगत् चलता है। अध्यात्म में बहुत बड़ी शक्ति है। अत: अध्यात्मिक जीवन कभी मत छोडऩा, आपका अन्तर्मन हमेशा प्रकाशित रहेगा।”
श्री अवस्थी जी ने कहा कि ”कभी भी आपके जीवन में संकट आजाए, तो एकाग्र होकर श्री दुर्गाचालीसा का पाठ अवश्य कर लेना अथवा बीजमंत्र ‘माँ’ और ú का जाप करें। इससे सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होजाती है और मन शांतिकुञ्ज में विचरण करने लगता है, जहाँ से संकट के समाधान की राह अवश्य प्राप्त होगी।
इतना अवश्य है कि समाधान के लिए कर्म आपको ही करना पड़ेगा।”
उद्बोधनक्रम के पश्चात् कार्यक्रम में हज़ारों की संख्या में उपस्थित ‘माँ’ के भक्तों ने शक्तिजल और प्रसाद ग्रहण करके जीवन को धन्य बनाया।