Thursday, November 28, 2024
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ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के निर्देशों पर चलने वाले ही उद्वेग व अधम विचारों पर नियंत्रण पा सकते हैं

संकल्प शक्ति। पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के स्थापना दिवस (23 जनवरी) पर बच्चों व युवाओं में स्वास्थ्य एवं चेतनाशक्ति के विकास के लिये, अखिलभारतीय खेलकूद व गीत-संगीत के विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे। इतना ही नहीं, इस पावन अवसर पर योगभारती विवाह पद्धति से आडम्बरमुक्त सामूहिक विवाह कार्यक्रम भी विधि-विधान के साथ सम्पन्न होगा, जिसमें कई नवयुगल परिणयसूत्र में बंधकर ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।

 पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम एक ऐसा स्थान है, जहाँ आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा श्री दुर्गा जी की भक्ति का अविरल प्रवाह प्रवाहित है, जिसमें डूबकर भक्तजन, भौतिक जगत् की समस्त विपदाओं को भूलकर अलौकिक शान्ति का अनुभव करते हैं। लोगों में अन्तश्चेतना के विकास और उन्हें भक्ति, ज्ञान और आत्मशक्ति प्राप्त करने के क्षेत्र में ले जाने के लिए ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा शुभमुहूर्त में पौष शुक्ल पूर्णिमा संवत् 2054 विक्रमी दिनांक 23 जनवरी 1997, दिन गुरुवार को प्रात: 11.30 बजे मूलध्वज की स्थापना करके पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम की नीव रखी गई, जिसकी अध्यात्मिक संरचना निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर है। पश्चात्, 15 अप्रैल 1997 से अनन्तकाल के लिये श्री दुर्गाचालीसा का अखण्ड पाठ प्रारम्भ कराया गया है और तब से आपश्री के द्वारा एकान्त योग-ध्यान-साधना के साथ ही लगातार मूूलध्वज व चालीसा पाठ मंदिर में सुबह-शाम माता भगवती की पूजा-अर्चना का क्रम सम्पन्न किया जा रहा है, तथापि इससे उत्पन्न चेतनात्मक ऊर्जा का लाभ करोड़ों लोग प्राप्त कर रहे हैं।

यह पवित्र धाम हरीभरी वादियों, मैकल पर्वतशृंखलाओं से घिरा है और यहाँ का प्राकृतिक वातावरण अत्यन्त ही लुभावना है। सिद्धाश्रम सरिता को पार करके आश्रम क्षेत्र में प्रवेश करते ही स्वाभाविक रूप से यहाँं की माटी की ऊर्जा अपनी ओर आकर्षित करने लगती है।

ऋषिवर ने जो साधनात्मकक्रम दिए हैं, उन्हें अपनाकर पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ साधनापथ पर चलने से आपके शरीर में विशेष आन्तरिक शक्ति के जाग्रत् होने का आभास मिलेगा और यही शक्ति आपको जीवन की कठिन से कठिन समस्याओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करके सामान्य स्थिति से ऊपर उठाती चली जायेगी।

 माता भगवती ही जन-जन की इष्ट हैं, इस सत्य का ज्ञान प्रदान करने वाले महाराजश्री ने स्वयं को कठिन एवं दुर्लभतम साधनाओं में सतत रत रखकर समाज के बीच ऋषित्व का जीवन जीते हुए करोड़ों लोगों को सत्यधर्म की विचारधारा से जोड़कर नशामुक्त, मांसाहारमुक्त, चरित्रवान्, चेतनावान्, पुरुषार्थी और परोपकारी जीवन अपनाने की प्रेरणा देकर भय-भूख-भ्रष्टाचारमुक्त समाज के निर्माण का चिन्तन प्रदान किया है।  

ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के द्वारा आयोजित शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों में समाज के बीच महत्त्वपूर्ण दुर्लभ नवीन अध्यात्मिक चिन्तन प्रदान किये गये हैं, जो मानवजीवन को सही दिशा प्रदान करने में पूर्ण सहायक हैं। आपने समाज के बीच एक नवीन अध्यात्मिक ‘माँÓमय लहर पैदा कर दी है। आपश्री ने एक ऐसा चेतनामंत्र ‘ú जगदम्बिके दुर्गायै नम: प्रदान किया है, जो अतिमहत्त्वपूर्ण उपासनामंत्र है। इसे सभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय व लिंग का भेदभाव किये बिना अपनाया जा सकता है। यह मंत्र सर्वहितकारी, सर्वकल्याणकारी है। नित्यप्रति इसका जाप करने पर सद्बुद्धि आने के साथ ही आत्मशक्ति प्रबल होती है। मानवता के पथ पर चलने के लिए यह मंत्र अतिआवश्यक साधन है और यह साधन परिवारिक उत्तरदायित्त्व को निभाने के साथ ही मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के लिये भी प्रेरित करता है।  

पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम एक ऐसा पावन स्थान है, जहाँ का कण-कण चैतन्य है और यहाँ पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों, शिष्यों, भक्तों के लिए रात्रि विश्राम करने एवं भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था सदैव रहती है। अन्नपूर्णा भंडारा परिसर में सुबह-शाम दोनों समय हज़ारों भक्त नित्यप्रति भोजन ग्रहण करते हैं। प्रात:कालीन एवं सायंकालीन आरती, प्रणाम व गुरुवर से मिलने का क्रम भी पूरी तरह से नि:शुल्क है। आश्रम में आकर कोई भी किसी भी धर्म, जाति, सम्प्रदाय का व्यक्ति, चाहे अमीर हो या $गरीब, अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकता है। माह में केवल एक बार कृष्णपक्ष की अष्टमी को साधनात्मक व्यस्तता के कारण प्रात:कालीन मिलने का क्रम नहीं रहता। शेष सभी दिनों में प्रात: और सायं की आरती के उपरान्त मिलने का क्रम सम्पन्न होता है। 

जिनका स्वकीय मन पर नियंत्रण नहीं है, उनका जीवन व्यर्थ है

ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के निर्देशों पर चलने वाले ही उद्वेग व अधम विचारों पर नियंत्रण पा सकते हैं। ऋषिवर का चिन्तन है कि ”चाहे सुख की अवस्था हो या दु:ख की, मन में उद्वेग न आने दें। उद्वेग आने पर अधम विचार उत्पन्न होते हैं। ऐसी स्थिति में जो कार्य किया जाता है, वह विनाशकारी होता हैं। चिरस्थाई शांति, संतोष व दु:खों से मुक्ति वही मनुष्य पाता है, जो मन के उद्वेग के अनुसार कार्य न करके अपने अन्त:करण से पूछकर कार्य करता है। जिनका स्वकीय मन पर नियंत्रण नहीं है, उनका जीवन व्यर्थ है। अत: हर सम्भव प्रयास से सर्वप्रथम अपने अन्तर्मन को सुनियन्त्रित रखें। संसार के समस्त कार्य मन पर ही आधारित हैं। जितने भी अच्छे-बुरे कार्य हैं, सभी मन की सोच पर ही निष्पन्न होते हैं। अत: यदि मनोवृत्ति सात्विक है और विचार अच्छे हैं, तो कार्य निश्चय ही उत्तमोत्तम होंगे। लेकिन, यह मन तभी सात्विक दिशा की ओर प्रेरित होगा, जब हम हर समय स्रष्टा आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा के चिन्तन में संलग्न रहेंगे। मानवजीवन की सार्थकता भी यही है। 

  पवित्रता, आनंद और शांति, ये जीवन के अनमोल रत्न हैं। इन्हें प्राप्त करने के लिये एकाग्रचित्त होकर पहले गुरु में, फिर प्रकृतिसत्ता में व इसके पश्चात् अनन्तता, तात्पर्य शून्य में ध्यान केन्द्रित करें। अध्यात्मिक चेतना शान्त क्षणों में ही उत्पन्न होती है और इस तथ्य का बोध होता है कि ‘मैं कौन हूँ? मैं वह हूँ, जो कि आत्मा के रूप में हमारे अंदर समाहित है। वह आत्मा जो कि प्रकाशवान है और आपके हर अच्छे-बुरे कर्म का लेखा-जोखा रखती है।

सिद्धाश्रमवासियों की दिनचर्या

अध्यात्मिकचेतना से तरंगायित पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में रहने वालों की जीवनचर्या समाज के लिए अनुकरणीय है। ब्रह्ममुहूर्त में उठना, स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके माता आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की स्तुति, सद्गुरुदेव जी महाराज के पावन श्रीचरणों का स्पर्श, पश्चात् अपने कत्र्तव्यकर्म का सम्पादन। पुनश्च सायंकालीन बेला में स्नान व माता भगवती की साधना-आराधना और सद्गुुरु के चरणस्पर्श के उपरान्त 06 बजे से योगाभ्यास का क्रम और यदि यह क्रम हम सभी अपना लें, तो यह जीवन पूर्णरूपेण सरस होता चला जाएगा।

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