पुराणों में उल्लेखित प्रसंग के अनुसार एक बार भगवान् कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्रदेव को दी जाने वाली वार्षिक भेंट को देने से मना कर दिया। इंद्र को जब इस बात का पता चला, तो वह काफी नाराज़ हो गए। आवेश में आकर इंद्र ने ब्रज में भयानक बारिश करने का फैसला लिया। इसके बाद ब्रज में भयानक बारिश शुरू हो गई। ब्रजवासियों और अपने पशुओं को इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया और उसके नीचे सभी को सुरक्षित कर लिया। जब सात दिनों बाद भी इंद्र के प्रकोप पर किसी का कोई असर नहीं हुआ, तो इंद्र ने अपनी हार मान ली और बारिश रोक दी। इस दिन कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। तभी से गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है।
गोपाष्टमी का महत्त्व
गोपाष्टमी का दिन ब्रजवासियों के लिए बहुत महत्त्व रखता है। इस दिन श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण की पूजा का विशेष महत्त्व है। गोपाष्टमी के दिन इनकी पूजा करने से भक्तों को मन की शांति मिलती है और धनलाभ होता है। गोपाष्टमी के इस पवित्र दिन पर गायों और बछड़ों को सजाया जाता है। इसके बाद उनकी संपूर्ण विधि-विधान से पूजा की जाती है।
गोपाष्टमी पूजा की विधि
गोपाष्टमी के दिन गौ-माता को साफ पानी से स्नान करवाना चाहिए। इसके बाद रोली और चंदन से उन्हें तिलक लगाएं। साथ ही पुष्प, अक्षत्, धूप का अर्पण करें। इस प्रक्रिया के बाद में पूजा के लिए बनाया हुआ प्रसाद गौ-माता को खिलाएं और उनकी परिक्रमा करें। इस तरह गौ-माता की पूजा करने से आपके जीवन के कष्ट दूर हो होंगे।