नई दिल्ली, संकल्प शक्ति। यह कितनी शर्मनाक स्थिति है कि मणिपुर को लेकर देश-दुनिया में तो चर्चा हो रही है, लेकिन हमारे देश की संसद सत्तापक्ष और विपक्षी दलों का अखाड़ा बना हुआ है। मणिपुर की स्थिति पर चर्चा न हो पाने के लिए केवल और केवल क्षुद्र राजनीति करने वाले जि़म्मेदार हैं। मंगलवार को संसद के चार दिन बर्बाद हो गए, लेकिन मणिपुर पर चर्चा शुरू नहीं हो सकी। इसलिए नहीं हो सकी, क्योंकि इस पर सहमति नहीं बन पा रही है कि चर्चा किस नियम के तहत हो? क्या नियम विशेष पर चर्चा करने से मणिपुर के हालात यकायक शांत हो जाएंगे?
विपक्षी दल केवल नियम विशेष पर चर्चा को लेकर ही नहीं अड़े हंै, बल्कि उन्हें यह भी स्वीकार नहीं कि गृहमंत्री चर्चा की शुरुआत करें। वह पहले प्रधानमंत्री का वक्तव्य चाहते हंै और यह जिद चर्चा से बचने का बहाना ही कहा जा सकता है।
जबकि, सत्तापक्ष की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि यदि चर्चा के लिए समय कम पड़ा और उसे बढ़ाने की आवश्यकता पड़ी तो यह काम किया जा सकता है, लेकिन विपक्ष ने ठान लिया है कि वही होना चाहिए, जो उसकी ओर से कहा जा रहा है। इससे यही लगता है कि उसकी दिलचस्पी देश के समक्ष यह जताने में है कि सरकार मणिपुर पर चर्चा करने से बच रही है। शायद इसीलिए विपक्षी नेता संसद परिसर में प्रदर्शन करने और दोनों सदनों में नारेबाजी को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।