Sunday, November 24, 2024
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भारतीय इतिहास में महर्षि दधीचि जैसा दानी न हुआ है और न होगा

लोककल्याण के लिये देहत्याग करने वालों में महर्षि दधीचि का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। यास्क के मतानुसार, दधीचि की माता चित्ति और पिता अथर्वा थे, इसीलिए इनका नाम दधीचि हुआ था। महर्षि दधीचि तपस्या और पवित्रता की प्रतिमूर्ति थे। भगवान् शिव के प्रति अटूट भक्ति और वैराग्य में इनकी जन्म से ही निष्ठा थी।

कहा जाता है कि एक बार इन्द्रलोक पर वृत्रासुर नामक राक्षस ने अधिकार करके इन्द्र सहित देवताओं को देवलोक से निकाल दिया। सभी देवता अपनी व्यथा लेकर ब्रह्मा, विष्णु व महेश के पास गए, लेकिन कोई भी उनकी समस्या का निदान न कर सका। बाद में ब्रह्मा जी ने देवताओं को एक उपाय बताया कि ‘पृथ्वी लोक में दधीचि नाम के एक महर्षि रहते हैं। यदि वे अपनी अस्थियों का दान कर दें, तो उन अस्थियों से एक वज्र बनाया जाये, उस वज्र से वृत्रासुर को मारा जा सकता है, क्योंकि वृत्रासुर को किसी भी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। इसीलिए ऐसे प्राणी के अस्थियों से ही उसे मारा जा सकता है, जो कभी भी गुस्से के पकड़ में न आया हो और वे केवल महर्षि दधीचि ही हैं।Ó

महर्षि दधीचि के द्वारा अस्थियों का दान

देवलोक पर राक्षस वृत्रासु के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे। वह देवताओं को भांति-भांति से परेशान कर रहा था। अन्तत: देवराज इन्द्र को इन्द्रलोक की रक्षा व देवताओं की भलाई के लिए और अपने सिंहासन को बचाने के लिए देवताओं सहित महर्षि दधीचि की शरण में जाना ही पड़ा। महर्षि दधीचि ने इन्द्र को पूरा सम्मान दिया तथा आश्रम आने का कारण पूछा। इन्द्र ने महर्षि को अपनी व्यथा सुनाई, तो दधीचि ने कहा कि ‘मैं देवलोक की रक्षा के लिए क्या कर सकता हूँ?Ó देवताओं ने उन्हें ब्रह्मा जी की कही हुई बातें बताईं तथा उनकी अस्थियों का दान माँगा। महर्षि दधीचि ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी अस्थियों का दान देना स्वीकार कर लिया। उन्होंने समाधि लगाई और अपने देह को त्याग दिया। उस समय उनकी पत्नी आश्रम में नहीं थी। अब देवताओं के समक्ष ये समस्या आई कि महर्षि दधीचि के शरीर के मांस को कौन उतारे? इस कार्य के ध्यान में आते ही सभी देवता सहम गए। तब इन्द्र ने कामधेनु गाय को बुलाया और उसे महर्षि के शरीर से मांस उतारने को कहा। कामधेनु ने अपनी जीभ से चाट-चाटकर महर्षि के शरीर का मांस उतार दिया। अब केवल अस्थियों का पिंजर रह गया था।

इस तरह दधीचि की हड्डियों से बज्र बना और वृत्रासुर नामक राक्षस मारा गया।

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