Monday, November 25, 2024
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मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों पर कुपित है प्रकृति

वर्तमान समय में चहुंओर अराजकता एवं अशांति का घनघोर घटाटोप संव्याप्त है। लोकतंत्र के तथाकथित रक्षकों की स्वार्थान्धता के चलते अपराध व उग्रवाद पनपे हंै और ढोंगी, पाखंडी, लालची, विषय-विकारों से ग्रसित धर्माचार्यों के कारण आस्था का संकट गहरा गया है तथा लोगों के अन्दर दुष्प्रवृत्तियों ने अपना अधिकार कर लिया है। जब मनुष्य प्रकृति के नियमों के विपरीत आचरण करने लगता है, तो प्रकृति का कुपित होना स्वाभाविक है। प्रकृति अतिवृष्टि, अनावृष्टि, आंधी-तूफान व महामारी के माध्यम से चेतावनी दे रही है कि या तो समय रहते संभल जाओ, अन्यथा सबकुछ नष्ट हो जायेगा।

ऋषिवर सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के निर्देशन में भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्यों ने समाज को बदलने का संकल्प ठाना है और इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये, धर्म-अध्यात्म को प्रवाह देने के लिए वे तन-मन-धन से जुट गये हैं और वह दिन दूर नहीं, जब समाज का हर घर ‘माँ’ की ज्योति से प्रकाशित होगा और आस्था पर उत्पन्न हुये संकट में विराम लगेगा तथा लोगों के अन्दर घर कर गईं दुष्प्रवृत्तियों मेें विराम लगेगा। परिवर्तन में समय अवश्य लगेगा, लेकिन परिस्थितियां ऐसी करवट लेंगी, जैसे कभी विषम परिस्थितियां रही ही न हों। धीरे-धीरे अन्यायी-अधर्मी-व्यभिचारी, अध्यात्मिक प्रवाह के एक झोंके में ही धराशायी हो जायेंगे।

वर्तमान का अविकसित, अशिक्षित, पीडि़त और गरीब भारत एक बार पुन: अपनी अध्यात्मिक संस्कृति को समेटकर श्रेष्ठता व समृद्धि का ऐसा मानदण्ड स्थापित करेगा, जो अद्वितीय होगा। भले ही कुछ वर्ष और लग जायें, लेकिन हमारा देश पुन: अध्यात्मिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा और इसके सामने सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक होगा।

जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषा और संप्रदाय सम्बंधी विवाद उत्पन्न करके जो राजनेता देश को विघटित कर देना चाहते हैं, उनका चक्रव्यूह जल्द ही टूटेगा और ये सभी विवाद समाप्त होंगे। उस समय मानवता और समाजिकता ही सर्वोपरि होगी। परोपकार का अभ्युदय होगा, लोगों की मानसिकता में आमूल-चूल परिवर्तन होगा और दुश्चरित्रता समाप्त होगी तथा अध्यात्मिक ऐश्वर्य कण-कण में व्याप्त होगा।

ऋषिवर श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने अपने शिष्यों से स्पष्टत: कहा है कि ”सत्यधर्म की रक्षा के लिये, युग परिवर्तन के लिये मुझे चेतनावान् शिष्यों की ज़रूरत है, जो सिंह के समान दहाडऩे की क्षमता रखते हों और जिनका जीवन राजहंस के समान हो। मुझे शिष्यों के आंसू नहीं, बल्कि उनका पसीना चाहिये तथा उनकी जान नहीं, उनका जीवन चाहिये। मैं अध्यात्मिक संस्कृति की पुनसर््थापना तथा समाज के अवगुणों को दूर करने आया हूँ।

आज चहुँओर अनीति-अन्याय-अधर्म का साम्राज्य है और समाज अन्यायी-अधर्मियों के शिकंजे में फंसा हुआ है। आज मानसिक, शारीरिक, आर्थिक एवं बौद्धिक सभी क्षेत्रों में विकलांगता हावी है। ऐसी स्थिति में केवल धर्म का बिल्ला लगा लेने से काम नहीं चलेगा, बल्कि हमें धर्मरक्षा, मानवता की सेवा और राष्ट्ररक्षा के लिए आगे आना होगा।

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