नागपंचमी का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नागों की प्रधान रूप से पूजा की जाती है। सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है, जिसके अंतर्गत ऐसा माना गया है कि भू गर्भ से नाग निकलकर भू-तल पर आ जाते हैं। नाग किसी के भी अहित का कारण न बने, इसके लिए ही नाग देवता को प्रसन्न करने के लिए नागपंचमी की पूजा की जाती है। इस वर्ष यह त्यौहार दिनांक 09 अगस्त को है।स्वयं नागदेव हैं
पंचमी तिथि के स्वामी
श्रावण शुक्ल पंचमी को पूरे देश में नाग पंचमी का पर्व श्रद्धाभाव से मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता का पूजन सुबह-सवेरे किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पंचमी तिथि के स्वामी स्वयं नागदेव है और इस दिन नागों की पूजा करने से धन, मनोवांछित फल और शक्ति की प्राप्ति होती है।
यह तिथि नागों को प्रसन्न करने के लिए श्रेष्ठ होती है। यही वजह है कि नागपंचमी पर नागों की पूजा करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण और विशेष माना गया है। इस तिथि पर नाग-नागिन के जोड़े को दूध से स्नान करवाने की परम्परा है। इस दिन पूजा करने से मनुष्य को सांपों के भय से मुक्ति तथा पुण्य की प्राप्ति होती है।
नागपंचमी की तिथि पर मुख्य रूप से आठ नाग देवताओं की पूजा का विधान है। इन अष्टनागों के नाम हैं-वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय। इनकी पूजा किसी भी व्यक्ति के लिए फलदायी साबित होती है। मान्यताएँ
पुराणों के अनुसार, सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं-दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं, जिन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए, तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था, क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नागवंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था, उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नागपंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित हुई। धार्मिक महत्त्व
हिंदूधर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है, इसलिए इन्हे पूजनीय माना गया है। नाग देवता को भगवान् शिव ने अपने गले में हार के रूप में धारण किया हैं, वहीं शेषनाग रूपी शैया पर भगवान् विष्णु विराजमान रहते है। सावन माह के आराध्य देव भगवान शंकर माने गए हैं।
ऐसी मान्यता है कि अमृत सहित नवरत्नों को प्राप्त करने के लिए जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तब संसार के कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में कार्य किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।