सीधी। नशे-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान्, चेतनावान, पुरुषार्थी और परोपकारी समाज के निर्माण की दिशा में सतत प्रयत्नशील भगवती मानव कल्याण संगठन एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट के द्वारा जनजागरण अभियान के तहत दिनांक 3-4 $फरवरी 2023 को छत्रसाल स्टेडियम, सीधी (म.प्र.) में 24 घंटे का श्री दुर्गाचालीसा अखण्ड पाठ का भव्य आयोजन किया गया।
इस दिव्य अनुष्ठान की समापन बेला पर भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन सिद्धाश्रमरत्न संध्या शुक्ला जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ”यह हमारा सौभाग्य है कि हमने ऋषियों-मुनियों की धरती भारत देश में जन्म लिया है, जहाँ देवी-देवताओं ने जन्म लिया है, भगवान् विष्णु, भगवान् शंकर ने अवतार लिया है और उससे भी बड़ा सौभाग्य यह है कि सच्चिदानंदस्वरूप सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का हमें सान्निध्य प्राप्त है।
सद्गुरुदेव जी महाराज हमें साधक बना रहे हैं, अत: योग-ध्यान-साधना में लग जाओ। नित्यप्रति सूर्याेदय से पहले उठो, अपने घरों में ‘माँÓ की ज्योति जलाओ और ‘माँ के चरणों के समक्ष शिशुवत बैठकर प्रार्थना करो कि हे माँ, हमें धर्मरक्षा, राष्ट्ररक्षा और मानवता की सेवा करने के लिए शक्ति प्रदान करो।
शक्तिस्वरूपा बहन ने कहा कि ”साधक बनने के लिए मन को एकाग्र करना आवश्यक है। अपने मन में विचार करो कि हमें यह मानवजीवन क्यों मिला है? क्या भोजन करने, सोने और विकारों से युक्त जीवन जीने के लिए? अरे, ऐसा जीवन तो पशु भी जीते हैं।
हमारे धर्म के पतन का मूल कारण क्या है? यही कि हम भारतवासी, हम सनातनी अपनी संस्कृति को भूल चुके हैं, अपने ऋषियों-मुनियों की परम्परा को भूल चुके हैं। आज अनेक लोग धर्मरक्षा की बात तो करते हैं, लेकिन धर्म की शक्ति क्या होती है, यह भी उन्हें ज्ञान नहीं है। इसी का ज्ञान कराने के लिए योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने विश्वअध्यात्मजगत् को शक्तिपरीक्षण की चुनौती दी है कि एक सम्मेलन हो और एकबार सभी धर्मगुरु, सभी शंकराचार्य सामने आएं तथा धर्म के महत्त्व, धर्म की शक्ति को उजागर करें
भारतीय शक्ति चेतना पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सिद्धाश्रमरत्न सौरभ द्विवेदी जी ने कहा कि ”भारत देश का मतलब है धर्म का देश, इसीलिए भारत को धर्मप्रधान देश कहा जाता है। आजकल हमारे देश में सनातनधर्म को लेकर बहुत चर्चाएं हो रहीं हैं। सनातनधर्म की रक्षा की बात भागवताचार्य, प्रवचनकर्ता, पर्चा बनाने वाले भी करते देखे-सुने जा रहे हैं, यह अच्छी बात है और होनी भी चाहिए। लेकिन क्या उनके आयोजनों में नशे-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान् लोगों की उपस्थिति रहती है? अधिकांशत: नहीं रहती, क्योंकि उन्होंने समाज को संस्कार ही नहीं दिया। किस्से-कहानियाँ सुनाने, पर्चा बनाने व रास-रंग को ही उन्होंने सनातनधर्म मान लिया है।
हमारे सनातनधर्म में तप-साधना तो है ही, इसका शुभारम्भ नशे-मांसाहार से मुक्त चरित्रवान्, चेतनावान्, पुरुषार्थी और परोपकारी जीवन से होता है और समाज को इस दिशा में बढ़ाने का कार्य भगवती मानव कल्याण संगठन कर रहा है। जब तक लोगों को सतकर्मी नहीं बनाया जायेगा, तब तक सनातनधर्म अपने पूर्णस्वरूप में प्रभावी नहीं हो सकता।