नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद दिनोंदिन महंगाई बढ़ते क्रम में है, जिससे आम घरेलू बजट बिगड़ चुका है और $गरीब वर्ग तो एक समय भूखे सोने के लिए मज़बूर है। 15 जुलाई, दिन सोमवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, जून में थोक महंगाई बढ़कर 3.36 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इससे पहले अप्रैल 2024 में महंगाई 1.26 प्रतिशत थी, जो 13 महीने का उच्चतम स्तर था। उधर, रिटेल महंगाई में भी तेजी देखने को मिल रही है।
पूरा असर आम आदमी पर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज़्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज़्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है, तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स, आम आदमी पर डाल देते हैं।
कैसे मापी जाती है महंगाई?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाज़ार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है।
महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75 प्रतिशत, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 20.02 प्रतिशत और फ्यूल एंड पावर 14.23 प्रतिशत होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86 प्रतिशत, हाउसिंग की 10.07 प्रतिशत और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।
जून में रिटेल महंगाई बढ़कर 5.08 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह महंगाई का 04 महीने का उच्चतम स्तर है। अप्रैल में महंगाई 4.85 प्रतिशत रही थी। वहीं एक महीने पहले मई में महंगाई 4.75 प्रतिशत रही थी। नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस ने शुक्रवार, 12 जुलाई को ये आंकड़े जारी किए।
जारी आंकड़ों के अनुसार, खाद्य महंगाई दर 8.69 से बढ़कर 9.36 प्रतिशत हो गई है। वहीं शहरी महंगाई भी महीने-दर-महीने आधार पर 4.21 प्रतिशत से बढ़कर 4.39 प्रतिशत पर आ गई है। ग्रामीण महंगाई दर भी 5.34 प्रतिशत से बढ़कर 5.66 प्रतिशत पर पहुंच गई है।