भिलाई। छत्तीसगढ़ का भिलाई हरे-भरे वनों एवं अपनी खनिज संपदा के लिए चर्चित है। सूत्रों ने बताया कि छत्तीसगढ़ में बांस की कमी होने लगी है। ऐसे में बांस से उपयोगी वस्तुएं बनाकर बेचने वाले कंडरा/ बंसोड समाज के लगभग 18000 लोगों के लिए अब दो जून की रोटी जुटाना मुश्किल है।
आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि वन क्षेत्र के मामले में देश के अन्दर तीसरा स्थान रखने वाले छत्तीसगढ़ में बांस का संकट उत्पन्न हो गया है, जबकि वन अमला वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए आधा दर्जन प्रमुख योजनाएं संचालित कर रहा है। इनमें एक योजना राष्ट्रीय बांस मिशन भी है। आवश्यकता के अनुरूप बांस पैदा न होने से आज हालत यह है कि बांस से उपयोगी सामग्री निर्मित कर घर-परिवार चलाने वाले परिवार संकट में है।
बांस से उपयोगी सामग्री निर्मित करने वाले दुर्ग के कंडरा पारा निवासियों का कहना है कि सरकारी बांस न मिलने से काम करना मुश्किल हो गया है।
3250 कार्डधारी हैं
प्रदेश में वर्तमान में 3250 कार्डधारी पंजीकृत हैं। इन्हें कार्ड देख कर प्रति परिवार 1500 बांस प्रति वर्ष रियायती दर पर दिया जाना चाहिए, लेकिन नहीं मिल रहे हैं। पिछले कई साल से नए कार्ड भी नहीं बनाए जा रहे हैं।
सरकार से रियायती दर पर बांस न मिलने से कंडरा/बंसोड़ समाज के लोग कोचिए, टॉल या ठेकेदारों के ऊंचे दर पर बांस खरीदने व निर्मित सामग्री सस्ते दर पर बेचने के लिए मज़बूर हैं। एक महिला ने बताया कि बाज़ार में 100-120 रुपए में बिकने वाला सूपा कोचिए या ठेकेदार सिर्फ 70 रुपए देता है। 50 रुपए की टोकनी 20 रुपए देता है। अन्य सामग्री का भी यही हाल है।