नई दिल्ली। शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि अदालत किसी के साथ हुई नाइंसाफी की भरपाई, किसी बेगुनाह को सजा देकर नहीं कर सकती। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों द्वारा दिए गए बयानों में गंभीर अंतर्विरोध हैं और सेशन अदालत व हाईकोर्ट दोनों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। पीठ ने यह भी कहा कि आरोपी इतना $गरीब है कि वह सत्र न्यायालय में भी एक वकील को नियुक्त करने का जोखिम नहीं उठा सकता था।
जि़ला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में उसके बार-बार अनुरोध के बाद एक वकील की सेवा न्यायमित्र के रूप में प्रदान की थी। पीठ ने जांच ठीक से नहीं करने के लिए अभियोजन पक्ष की भी आलोचना की। जजों ने कहा-हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह छह साल की मासूम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या का वीभत्स मामला है। पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने जांच ठीक से नहीं कर पीडि़ता के परिवार के साथ भी अन्याय किया है। बिना किसी सबूत के अपीलकर्ता पर दोष तय करके अभियोजन पक्ष ने अपीलकर्ता के साथ तो अन्याय किया ही है। अदालत किसी के साथ हुई नाइंसाफी की भरपाई, किसी बेगुनाह को सजा देकर नहीं कर सकती।
श्रावस्ती जि़ले के आरोपी के खिलाफ अभियोजन का मामला यह था कि वह होली के मौके पर अपनी करीब छह साल की भतीजी को डांस और गाने की परफार्मेंस दिखाने के बहाने साथ लेकर गया और उसके बाद बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी। सत्र न्यायालय ने मामले में मौत की सजा सुनाई। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसकी अपील को खारिज करते हुए मौत की सजा की पुष्टि कर दी। आरोपी की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने शुरू से ही सफाई दी थी कि उसे स्थानीय रूप से शक्तिशाली व्यक्ति के इशारे पर फंसाया गया था।
रिकार्ड पर मौजूद सबूतों का हवाला देते हुए पीठ ने यह भी कहा कि साक्ष्यों में विरोधाभास है। जिससे साक्ष्य पूरी तरह से अविश्वसनीय लगते हैं। जजों ने कहा कि मामले के पहलू निश्चित रूप से अभियोजन द्वारा अनुमानित कहानी पर एक मजबूत संदेह पैदा करते हैं। लेकिन दोनों न्यायालयों ने इसे पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। आरोपी की अपील स्वीकार करते हुए अदालत ने उसे हत्या और बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया।