भारत का संविधान अनेक विषमताओं के बाद भी देश को एक सूत्र में पिरोये हुए हैं। समय- समय पर संविधान पर प्रश्नचिह्न भी लगते रहे हैं और इन प्रश्नों में एक मूल प्रश्न है कि क्या भारत का संविधान एक आयातित संविधान है? जिसे अन्य देशों के संविधानों के प्रावधानों को जोड़-तोड़ करके बनाया गया है या ये संविधान अपनी मूल अवधारणा में भारतीय है! इस प्रश्न का उत्तर समझनेके लिए आपको इतिहास जानना होगा।
स्वतंत्रता के बाद समूचे विश्व में लोगों के मन में यह आशंका थी कि क्या भारत एक समावेशी, दूरगामी एवं प्रभावी संविधान का निर्माण कर पाएगा? भारत ने सदियों $गुलामी का दंश झेला, जिसके परिणामस्वरूप शोषण और अन्याय भारतीय जनमानस पर अपनी अमिट छाप बनाए हुए था। ऐसे में एक राष्ट्र का आत्मबोध नष्ट हो जाना स्वाभाविक बात थी। ब्रिटिश राजनेता चर्चिल ने घोषणा की थी भारतीय नेतृत्व अक्षम लोगों से भरा हुआ है, जो संभवत: देश को कुछ वर्षों तक भी नहीं चला पाएंगे।
इस नकारात्मकता के अतिरिक्त एक बड़ी बाधा यह भी थी कि भारत भिन्नताओं से भरा हुआ राष्ट्र है, जिसमें भाषा, मत, संप्रदाय, जाति जैसे कई विभेद थे। जबकि, यूरोप का इतिहास हमारे सामने हैं, जहां केवल भाषा के आधार पर न केवल राष्ट्र बंटे, बल्कि रक्तपात भी हुआ। ऐसे समय में यह दायित्व हमारे संविधान निर्माताओं के सामने आया कि वे एक ऐसे संविधान का निर्माण करें, जो भारत की संप्रभुता, आकांक्षा एवं भविष्य की रक्षा कर सके।
भारत के संविधान निर्माताओं ने अथक परिश्रम से 02 वर्ष 11 महीने और 18 दिन में जो संविधान लिखा, उसने विश्व में विशालतम संविधान होने का कीर्तिमान स्थापित किया। संविधान सभा ने लम्बे वाद विवाद के बाद एक ऐसे ग्रन्थ का निर्माण किया, जो अपने मूल्यों में दृढ़, विचारों में प्रगतिशील एवं क्रियान्वन में लचीला था। संविधान निर्माण के बाद देश-विदेश में कई लोगों ने आक्षेप लगाया की संविधान मौलिक नहीं, वरन एक न$कल किया हुआ दस्तावेज है, जहाँ अलग-अलग प्रावधान विश्व के विभिन्न संविधान और विधि व्यवस्था से लिए गए हैं।
यद्यपि यह सत्य है कि भारतीय संविधान के कुछ प्रावधानों की प्रेरणा विश्व के अन्य व्यवस्थाओं से ली गई है, लेकिन उनका स्वरूप, उनके पीछे का दर्शन, उनके पीछे की चिंता भारतीय जनमानस की ही थी। उदाहरण के रूप में हमने अमेरिकी संविधान से मौलिक अधिकारों की प्रेरणा तो ली, लेकिन वहां के घातक अस्त्रों को रखने के प्रावधान को स्थान नहीं दिया। हमने संपत्ति का अधिकार तो बनाया, लेकिन उसका स्वरूप स्थाई नहीं बनाया एवं संविधान बनने के कुछ समय बाद यह अधिकार हमने हटा भी दिया।
भारतीय संविधान के निर्माणप्रक्रिया की तुलना हमारे पौराणिक समुद्र मंथन से भी की जा सकती है, जिसमे पूरे समुद्र का मंथन करके अमृत निकाला गया था, उसी प्रकार विश्व के समस्त संविधानों का मंथन करके भारतीय संविधान की रचना की गयी है। इसके अतिरिक्त सभी वाह्य विचारों को अस्वीकार कर देने की पाश्चात्य संकीर्णता भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।