संकल्प शक्ति। शक्ति आराधना का पर्व चैत्र नवरात्र चल रहा है और इस पर्व पर अनेक हिन्दूधर्मावलम्बी व्रत-उपवास रहकर मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए किसी न किसी दिव्यमंत्र का जाप करने में निमग्न हैं। लेकिन, इस बात का ध्यान रखें कि जाप का फल विश्वास, भावना या समर्पण पर आधारित है न कि गिनती पर। यदि आपका आचार-विचार अच्छा है और आपने अहंकार एवं दुष्प्रवत्तियों का त्याग कर दिया है, तभी मन्त्रजप का फल प्राप्त हो सकता है, जो साधक मन-वचन-कर्म से पवित्र भावनाओं के साथ माता जगदम्बे की उपासना करता है और उसके हृदय में मानवता की सेवा, धर्मरक्षा एवं राष्ट्ररक्षा के प्रति तड़प रहती है, ऐसे साधक ही अभीष्ट लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं।
अत: ‘माँ’ की साधना-आराधना एवं सद्गुरु की स्तुति करने से पहले असत्य आचरण छोड़कर सत्यधर्म का मार्ग अपनायें और ऐसा कोई कृत्य न करें, जिससे किसी को मानसिक व शारीरिक क्लेश हो। अधिकतर यह देखने में आता है कि लोग स्वयं का आचरण तो सुधारते नहीं और साधनात्मक दिखावा करने तथा दूसरों को सीख देने में अपना समय गवांते हैं। जिस तरह प्रकृतिसत्ता द्वारा प्रदत्त हवा, प्रकाश, जल व अन्न ग्रहण करने का अधिकार सभी प्राणियों को है, उसी तरह आपका कत्र्तव्य है कि सदा सत्यधर्म का पालन करते हुये कष्ट में फंसे दु:खी प्राणियों की हर सम्भव सहायता करें।
ऋषिवर सद्गुरुदेव परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का चिन्तन है कि ”इच्छाओं की पूर्ति में अंधआसक्ति न रखो। अरे! तुम्हारे पास क्या है? जिसे देखकर मिथ्या अभिमान करते रहते हो। यह धन-दौलत, यह पद, यह तुम्हारा शरीर, एक दिन सबकुछ नष्ट होजाना है और जब मृत्यु का बुलावा आता है, तब कुछ काम नहीं आता। अत: उस पूँजी का संग्रह करो, जो जन्म-जन्मांतर तक साथ नहीं छोड़ते और जिनका कभी नाश नहीं होता। अपने चरित्र को तुम जितना अधिक दृढ़ करोगे, परोपकार की भावना जितनी अधिक तुम्हारे अन्दर रहेगी, उतना ही अधिक तुम परमसत्ता और गुरुसत्ता की कृपा के पात्र बनोगे। अत: बाह्य के स्थान पर आंतरिक विकास को जीवन का लक्ष्य बना लो। इन्द्रियसक्त जीवन से विरत होकर अध्यात्मिकशक्ति का एकत्रीकरण करो, तभी अज्ञानान्धकार दूर हो सकेगा और अध्यात्मिक ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित हो सकोगे।”
प्रस्तुति:- अलोपी शुक्ला