देवर्षि नारद को शास्त्रों में भगवान् का मन कहा गया है। इसी कारण हर युग में, सभी लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारद जी का सदैव एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी हमेशा उनका आदर किया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- ‘देवर्षीणाम् च नारद:।Ó अर्थात् देवर्षियों में मैं नारद हूं। श्रीमद्भागवत महापुराण का कथन है कि सृष्टि में भगवान् ने देवर्षि नारद के रूप में तीसरा अवतार ग्रहण किया और सात्वततंत्र (जिसे नारद-पांचरात्र भी कहते हैं) का उपदेश दिया, जिसमें सत्कर्मो के द्वारा भवबंधन से मुक्ति का मार्ग दिखाया गया है। नारद जी को ऋषिराज के नाम से भी जाना जाता है।
वायुपुराण में देवर्षि के पद और लक्षण का वर्णन किया गया है। देवलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ऋषिगण देवर्षि नाम से जाने जाते हैं। भूत, वर्तमान एवं भविष्य, इन तीनों कालों के ज्ञाता, सत्यभाषी, स्वयं का साक्षात्कार करके स्वयं में सम्बद्ध, कठोर तपस्या से लोकविख्यात, गर्भावस्था में ही अज्ञानरूपी अंधकार के नष्ट होजाने से जिनमें ज्ञान का प्रकाश हो चुका है, ऐसे मंत्रवेत्ता तथा अपने ऐश्वर्य (सिद्धियों) के बल से सब लोकों में सर्वत्र पहुँचने में सक्षम, मंत्रणा हेतु मनीषियों से घिरे हुए देवता, द्विज और नृप देवर्षि कहे जाते हैं।
इसी पुराण में आगे लिखा है कि धर्म, पुलस्त्य, क्रतु, पुलह, प्रत्यूष, प्रभास और कश्यप, इनके पुत्रों को देवर्षि का पद प्राप्त हुआ। धर्म के पुत्र नर एवं नारायण, क्रतु के पुत्र बालखिल्यगण, पुलह के पुत्र कर्दम, पुलस्त्य के पुत्र कुबेर, प्रत्यूष के पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गए, किंतु जनसाधारण देवर्षि के रूप में केवल नारद जी को ही जानता है। उनकी जैसी प्रसिद्धि किसी और को नहीं मिली। वायुपुराण में बताए गए देवर्षि के सारे लक्षण नारदजी में पूर्णत: घटित होते हैं।
महाभारत के सभापर्व के पाँचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय दिया गया है। बताया गया है कि देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के तत्त्वज्ञ, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापण्डित, बृहस्पति जैसे महाविद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष के यथार्थ के ज्ञाता, योगबल से समस्त लोकों के समाचार जान सकने में समर्थ, सांख्य एवं योग के सम्पूर्ण रहस्य को जानने वाले, देवताओं-दैत्यों को वैराग्य के उपदेशक, कत्र्तव्य-अकत्र्तव्य में भेद करने में दक्ष, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सदुगुणों के भण्डार, सदाचार के आधार, आनंद के
सागर, परम तेजस्वी, सभी विद्याओं में निपुण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं।