गुप्त नवरात्र 19 जून से शुरू होकर 27 जून को समाप्त होगी। विदित हो कि गुप्त नवरात्र विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक पूर्ण पवित्रस्वरूप धारण करके नियमपूर्व व्रत और साधना करते हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, नौ दिन व्रत रखने वाले साधकों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए और नमक व अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। किसी को भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। साधक को माता की दोनों समय आरती करना चाहिए। इन दिनों में श्री दुर्गाचालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष लाभदायी होता है।
गुप्त नवरात्र में साधकों के लिए नौ दिनों तक उपवास रखने का विधान बताया गया है। इस नवरात्र में माता की आराधना रात के समय की जाती है। इन नौ दिनों के लिए कलश की स्थापना की जा सकती है। अगर कलश की स्थापना की है, तो दोनों समय मंत्र जाप और श्री दुर्गाचालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
गुप्त नवरात्र की कथा
शृंगी ऋषि साधना करने के बाद भक्तों की व्यथा सुन रहे थे, उसी वक्त भीड़ में से एक महिला ने ऋषि का आशीर्वाद लेने के बाद अपनी व्यथा सुनाई कि मेरे पति व्यसनी है, इस वजह से हम पूजा-पाठ नहीं कर पाते हैं। कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मुझे कम समय में देवी का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। शृंगी ऋषि ने बताया कि अगर गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं का पूजन नियमानुसार कर लेते हैं, तो जातक को पूर्ण फल प्राप्त होता है। महिला ने गुप्त नवरात्र का नियमानुसार पूजन किया। इससे उनके पति सदाचारी गृहस्थ हुए और घर में समृद्धि आई।
रात्रिकालीन पूजन और साधना
माघ और आषाढ़ महीने में पडऩे वाली गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं का पूजन और साधना की जाती है। इस नवरात्र में रात्रिकालीन साधना होती है। देवी शास्त्रों की मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्याओं के पूजन से मनोकामना पूर्ण होती है। गुप्त नवरात्र में, प्रत्यक्ष नवरात्र जैसा ही साधना, पूजा-पाठ करने का नियम है। पहले दिन कलश स्थापना व आखिरी दिन विसर्जन के बाद पारण होता है।