Monday, November 25, 2024
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हरियाली अमावस्या पर लगाएं जीवनरक्षक पौधे

तीनों धाराओं के सदस्यों, कार्यकर्ताओं व देशवासियों से शक्तिस्वरूपा बहनों ने किया आवाहन

संकल्प शक्ति, अलोपी शुक्ला। हमारे हिन्दूधर्म में सावन (श्रावण) के महीने और इस माह में पडऩे वाले हरियाली अमावस्या का विशेष धार्मिक महत्त्व है। हरियाली अमावस्या का यह पर्व इस वर्ष 17 जुलाई को मनाया जायेगा।

भगवती मानव कल्याण संगठन की केन्द्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन पूजा शुक्ला जी, भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी एवं पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम ट्रस्ट की प्रधान न्यासी शक्तिस्वरूपा बहन ज्योति शुक्ला जी ने तीनों धाराओं से सम्बद्ध सदस्यों, कार्यकर्ताओं, गुरुभाई-बहनों और देशवासियों का आवाहन किया है कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हरियाली अमावस्या के दिन पीपल, तुलसी, बरगद, नीम, आम, आंवला आदि के पौधे अवश्य लगाएं और जब तक रोपे गए पौधे समृद्ध न होजायें, उनका पोषण करना भी आपका दायित्व है, अत: पानी और खाद देते रहें।

शक्तिस्वरूपा बहनों ने कहा कि हरियाली अमावस्या पर पीपल व तुलसी की पूजा की जाती है, इस बात से समझा जा सकता है कि हमारे जीवन में वृक्षों का कितना अधिक महत्त्व है। वृक्ष ही हमें प्राणवायु प्रदान करते हैं, साथ ही इनकी पत्तियाँ, छाल और जड़ भी औषधि का कार्य करते हैं। इसीलिए वृक्षों को जीवनदायिनी कहा गया है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में तो पेड़-पौधों पर ईश्वरीय शक्तियों का वास बताया गया है, अत: नए पौधों को लगाकर परमसत्ता से प्राप्त इस अनमोल जीवन के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें और अपने जीवन को खुशहाल बनाएं।

पुण्य का कार्य है पौधे लगाना

हरियाली अमावस्या के दिन पौधा लगाकर उसकी देखभाल करने से हमें पुण्य तो मिलता ही है, पौधे जब वृक्ष के रूप में तैयार होजाते है तो हमें प्राणवायु के साथ फल और जड़, पत्ते, व छाल के रूप में औषधि भी प्रदान करते हैं। हम अपने जीवन में जितनी भी प्राणवायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं, उसमें वृक्षों की मुख्य भूमिका होती है। इसे ध्यान में रखकर ही हमारे ऋषियों-मुनियों ने हरियाली अमावस्या के दिन पौधा लगाने के कार्य को पुण्यकार्य निरूपित किया है।

धार्मिक ग्रंथों में पर्वत और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास बताया गया है। पीपल में त्रिदेवों का वास माना गया है, जबकि आंवले के पेड़ में स्वयं भगवान् श्री लक्ष्मीनारायण का वास माना जाता है। इस दिन कई लोग उपवास भी रखते हैं। इसके बाद शाम को भोजन ग्रहण करके व्रत तोड़ा जाता है। 

पितृपूजा के लिए उत्तम दिवस

यह पावन अवसर जहाँ पितृपूजा, पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए उत्तम माना गया है, वहीं इस दिन नए पौधों को लगाने का विधान है।

अन्य अमावस्याओं में यह अमावस्या जहाँ पर्यावरण के प्रति ज़ागरूकता का पर्व है, वहीं लोगों के लिए आस्था का पर्व भी है। हरियाली अमावस्या का उत्सव भारत में बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे- महाराष्ट्र में इसे गतारी अमावस्या, आंध्रप्रदेश में चुक्कल अमावस्या और उड़ीसा में इसे चितलगी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है, जबकि उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में यह पर्व हरियाली अमावस्या के नाम से मनाया जाता है।

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