मध्यप्रदेश के अशोकनगर जि़ले की तहसील चंदेरी वैसे तो हस्तशिल्प कला से बनी चंदेरी साडिय़ों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन जितनी यहाँ की साडिय़ां महिलाओं को लुभाती हैं, उससे कहीं अधिक महाभारतकाल के शिशुपाल की नगरी कही जाने वाली चंदेरी की धरोहरें और प्रकृति प्रदत्त सुंदरता पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं। जो भी पर्यटक चंदेरी की प्राकृतिक सुदरता देखने के लिए वहाँ जाता है, वह मनभावन साडिय़ां अवश्य लेता है।
घर-घर बनती है साडिय़ां
बेतवा नदी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में चारों ओर पहाडिय़ों से घिरी चंदेरी हथकरघा से बनी साडिय़ों के लिए प्रसिद्ध है, जो चंदेरी साडिय़ों के नाम से बिकती हैं। पर्यटक यहाँ के घरों में साडिय़ों को बुने जाते देख सकते हैं और अपनी पसंद की साडिय़ों की खरीददारी कर सकते हैं। वैसे तो चंदेरी महाभारत काल से सम्बद्ध माना जाता है, जो उस काल में राजा शिशुपाल की नगरी था। लेकिन इतिहास के पन्नों में चंदेरी पर गुप्त, प्रतिहार, गुलाम, तुगलक, खिलजी, अफगान, गौरी, राजपूत और सिंधिया वंश के शासन के प्रमाण मिलते हैं। यहाँ पर राजा मेदनी राय की पत्नी मणीमाला के साथ 1600 वीर क्षत्राणियों ने बाबर के चंदेरी फतेह करने पर एक साथ जौहर किया था, जो आज भी यहाँ के किले में बने कुंड के पत्थरों के रंग से देखा जा सकता है। यहां करीब 70 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना किला पर्यटकों को लुभाता है। इसके अलावा कौशक महल, परमेश्वर तालाब, बूढ़ी चंदेरी, शहजादी का किला, जामा मस्जिद, रामनगर महल, सिंहपुर महल के अलावा यहाँ का म्यूजियम, बत्तीसी बावड़ी आदि कई धरोहरें प्रमुख आकर्षण के केंद्रबिंदु हैं।
चारों और से सुगम है चंदेरी पहुँचना
मालवा और बुंदेलखण्ड की सीमा पर स्थित चंदेरी तक पहुंचना चारों तरफ से सुगम हैं। यहाँ से ग्वालियर की दूरी $करीब 220 किमी है तो यहां की सीमाएं उत्तरप्रदेश को जोड़ती हैं। उत्तरप्रदेश का प्रमुख व्यापारिक शहर ललितपुर रेलवे स्टेशन चंदेरी के किले से महज 37 किमी दूर है, जबकि राजधानी भोपाल की दूरी यहाँ से 210 किमी है। पर्यटक नई दिल्ली-भोपाल रेलवे लाइन पर स्थित ललितपुर तक ट्रेन से आने के बाद आसानी से चंदेरी पहुंच सकते हैं।