Saturday, November 23, 2024
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खुदीराम बोस के बलिदान के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेगा देश

खुदीराम बोस का जन्म 03 दिसम्बर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जि़ले के बहुवैनी नामक गाँव में कायस्थ परिवार में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आज़ाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। छात्र जीवन से ही इस बालक के मन में हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प की अलौकिक दृढ़ता थी।

स्कूल छोडऩे के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैम्पलेट वितरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। 1905 में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

$फरवरी 1906 में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकड़ों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रान्तिकारी सत्येन्द्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगलाÓ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीराम इस प्रदर्शनी में बाँट रहे थे कि एक पुलिस वाला उन्हें पकडऩे के लिये दौड़ा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया, परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये।

इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार, 28 $फरवरी 1906 को खुदीराम बोस गिर$फ्तार कर लिये गये, लेकिन वह कैद से भाग निकले। लगभग दो महीने बाद अप्रैल में वह फिर से पकड़े गये। 16 मई 1906 को उन्हें रिहा कर दिया गया। 06 दिसंबर 1907 को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया, परन्तु गवर्नर बच गया। सन् 1908 में उन्होंने दो अंग्रेज़ अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया, लेकिन वह भी बच निकला।

अंग्रेज़ अत्याचारियों पर पहला बम

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम और प्रफुल्ल कुमार नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोड़ागाड़ी से उसके आने की राह देखने लगे। बँगले की निगरानी हेतु वहाँ मौज़ूद पुलिस के गुप्तचरों ने उन्हें हटाना भी चाहा, परन्तु वे दोनो उन्हें योग्य उत्तर देकर वहीं रुके रहे। रात में साढ़े आठ बजे के आसपास क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी के समान दिखने वाली गाड़ी आते हुए देखकर खुदीराम गाड़ी के पीछे भागने लगे। रास्ते में बहुत ही अँधेरा था। गाड़ी किंग्जफोर्ड के बँगले के सामने आते ही खुदीराम ने अँधेरे में ही आने वाली बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका। हिन्दुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज़ उस रात तीन मील तक सुनाई दी और कुछ दिनों बाद तो उसकी आवाज़ इंग्लैंड तथा योरोप में भी सुनी गयी और वहाँ इस घटना की खबर ने तहलका मचा दिया। यूँ तो खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाड़ी समझकर बम फेंका था, परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोड़ी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया। दैवयोग से गाडिय़ाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपीय स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पड़े। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों-रात नंगे पैर भागते हुए गये और 24 मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया, लेकिन खुदीराम को अंग्रेज़ सिपाहियों ने पकड़ लिया।

18 वर्ष की उम्र में चढ़ गए फांसी पर 

इधर दूसरी ओर अपने सहकर्मी खुदीराम से बिछडऩे के बाद प्रफुल्लकुमार काफी दूर तक भागने में कामयाब रहे। दोपहर के वक्त त्रिगुणचर्न घोष नाम के व्यक्ति ने उन्हें अपनी और भागते हुए देखा। उन्हें बमबारी के घटना के बारे में जानकारी मिल चुकी थी और वे समझ चुके थे की यह शख्स उन क्रांतिकारियों में से है। उन्होंने उसे पनाह देने का फैसला किया और उसी रात वे प्रफुल्ल के साथ रेलवे स्टेशन कोलकाता छोडऩे निकले और जिस ट्रेन से वे जा रहे थे, उसी ट्रेन में ब्रिटिश सब-इंस्पेक्टर बनर्जी भी सवार थे। कुछ देर बाद उन्हें प्रफुल्ल के असलियत के बारेमे पता चल गया, प्रफुल्ल भी समझ चुके थे की वे घिर चुका है। पकड़ में आने से पहले ही प्रफल्ल वहाँ से भाग निकला, लेकिन अपने आप को चारों ओर घिरा देख उन्होंने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी। दूसरी ओर खुदीराम के गिर$फ्तार होने के कुछ दिन बाद 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र 18+ वर्ष थी।

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