हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं सुभद्रा कुमारी चौहान। झाँसी की रानी (कविता) उनकी प्रसिद्ध कविता है। वे राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं। स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात् उन्होंने अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया।
उनका पहला कहानी संग्रह है ‘बिखरे मोती।Ó इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंछलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम्ब के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 कहानियां हैं। इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है। अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं। उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह 1934 में प्रकाशित हुआ। इस में उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईष्र्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग व वेश्या की लड़की कुल 9 कहानियां हैं। इन सब कहानियों का मुख्य स्वर परिवारिक व समाजिक परिदृश्य ही है। ‘सीधे साधे चित्रÓ सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है। इसमें कुल 14 कहानियां हैं। रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला – 8 कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान परिवारिक व समाजिक समस्यायें हैं। हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल 46 कहानियां लिखीं और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अतिलोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत् में सुप्रतिष्ठित हैं।
वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचनाओं की सादगी हृदयग्राही हैं।