Sunday, November 24, 2024
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वीरता का साक्षी है कुम्भलगढ़ का किला

राजस्थान में कई किले हैं, जिनमें कुम्भलगढ़ का किला मुख्य किलों में से एक है। 30 किलोमीटर के विशाल धरातलीय भूभाग में फैला यह किला मेवाड़ के प्राचीन इतिहास तथा वीरता का साक्षी है। मेवाड़ के प्रतापी शासक महाराणा कुम्भा ने इसका निर्माण करवाया था।

कुम्भलगढ़ दुर्ग को बनाने में 15 वर्षों का समय लगा था। राजस्थान के राजसमंद जि़ले में स्थित इस किले को अजेयगढ़ उपनाम से जाना जाता है, क्योंकि इसकी प्रहरी मोटी दीवार को चाइना वाल के बाद संसार की सबसे दूसरी बड़ी दीवार माना जाता हैं। अरावली की घाटियों में अवस्थित कुम्भलगढ़ महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है।

कुम्भलगढ़ के किले का इतिहास  

राजस्थान के कई किलों, स्मारकों तथा ऐतिहासिक स्थलों को विश्व विरासत की सूची में स्थान मिला हैं, जिनमें चित्तौडग़ढ़ का किला तथा कुम्भलगढ़ के किले को भी शामिल किया गया हैं। क्षेत्रफल के लिहाज से यह चित्तौडग़ढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला भी है।

इस किले का इतिहास बहुत पुराना है। कुम्भलगढ़ का दुर्भेद्य किला राजसमंद जि़ले में सादड़ी गांव के पास अरावली पर्वतमाला के एक उतुंग शिखर पर अवस्थित हैं। मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के अवशेषों पर 1448 ई. में महाराणा कुम्भा ने इस दुर्ग की नीव रखी, जो प्रसिद्ध वास्तुशिल्प मंडन की देखरेख में 1458 ई. में बनकर तैयार हुआ। इसकी चोटी समुद्रतल से 3568 फीट और नीचे की नाल से 700 फीट ऊँची हैं।

बीहड़ वन से आवृत कुम्भलगढ़ दुर्ग संकटकाल में मेवाड़ राजपरिवार का प्रश्रय स्थल रहा हैं। प्रशस्ति में दुर्ग के समीपवर्ती पर्वत शृंखलाओं के श्वेत, नील, हेमकूट, निषाद, हिमवत, गंधमादन इत्यादि नाम मिलते हैं। अबुल फजल ने कुम्भलगढ़ की उंचाई के बारे में लिखा हैं कि यह इतनी बुलंदी पर बना हुआ हैं कि नीचे से ऊपर देखने पर सिर की पगड़ी गिर जाती हैं। कुम्भलगढ़ मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है। महाराणा प्रताप का जन्म उदयसिंह का राज्याभिषेक और महाराणा कुम्भा की हत्या का साक्षी यह किला मालवा और गुजरात के शासकों की आँख का किरकिरी रहा। लेकिन, काफी प्रयासों के बावज़ूद भी वे उस पर अधिकार करने में असफल रहे। 1578 ई. में मुगल सेनानायक शाहबाज खां ने इस पर अल्पकाल के लिए अधिकार कर लिया था, किन्तु कुछ समय बाद ही महाराणा प्रताप ने इसे पुन: अपने अधिकार में ले लिया, तब से स्वतंत्रताप्राप्ति तक यह किला मेवाड़ के शासकों के पास ही रहा।

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