नारद मुनि बड़े ही तपस्वी और ज्ञानी ऋषि थे, जिनके ज्ञान और तप की माता पार्वती भी प्रशंसक थीं। एक दिन माता पार्वती शिव जी से नारद मुनि के ज्ञान की प्रशंसा करने लगीं। शिव जी ने पार्वती जी को बताया कि नारद बड़े ही ज्ञानी हैं, लेकिन किसी भी चीज का अंहकार अच्छा नहीं होता है। एक बार नारद को इसी अहंकार (घमंड) के कारण बंदर बनना पड़ा था। यह सुनकर माता पार्वती को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने शिव भगवान् से पूरा कारण जानना चाहा, तब श्री शिव ने बतलाया कि ‘इस संसार में कोई कितना ही बड़ा ज्ञानी हो, लेकिन श्री हरि जो चाहते हैं वो उसे बनना ही पड़ता है। नारद को एक बार अपने इसी तप और बुद्धि का अहंकार (घमंड) हो गया था। इसलिए नारद को सबक सिखाने के लिए श्री विष्णु को एक युक्ति सूझी।
अपने भक्त के अहंकार को श्री हरि सह नहीं पाते, इसलिए उन्होंने अपने मन में सोचा कि मैं ऐसा उपाय करूंगा कि नारद का घमंड भी दूर होजाए और मेरी लीला भी चलती रहे। श्री हरि ने अपनी माया से नारद जी जिस मार्ग से जा रहे थे, उस मार्ग पर एक बड़ा ही सुन्दर नगर बना दिया। उस नगर में शीलनिधि नाम का वैभवशाली राजा रहता था। उस राजा की विश्व मोहिनी नाम की बहुत ही सुंदर बेटी थी। विश्व मोहिनी स्वयंवर करना चाहती थी, इसलिए कई राजा उस नगर में आए हुए थे। नारद जी तो उस कन्या को देखते ही रह गए। अब नारद जी ने सोचा कि कुछ ऐसा उपाय करना चाहिए कि यह कन्या मुझसे ही विवाह करे। ऐसा सोचकर नारद जी ने श्री हरि को याद किया और भगवान् विष्णु उनके सामने प्रकट हो गए। नारद जी ने उन्हें सारी बात बताई और कहने लगे, हे नाथ आप मुझे अपना सुंदर रूप दे दो, ताकि मैं उस कन्या से विवाह कर सकूं। भगवान् हरि ने कहा, हे नारद! हम वही करेंगे जिसमें तुम्हारी भलाई हो। विष्णु जी ने अपनी माया से नारद जी को बंदर का रूप दे दिया। नारद जी को यह बात समझ में नहीं आई। वो समझे कि मैं बहुत सुंदर लग रहा हूं।
देवऋषि नारद तत्काल विश्व मोहिनी के स्वयंवर में पहुंच गए। स्वयं भगवान् विष्णु भी उस स्वयंवर में एक राजा का रूप धारण कर आ गए। विश्व मोहिनी ने कुरूप नारद की तरफ देखा भी नहीं और राजा रूपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी। मोह के कारण नारद मुनि की बुद्धि नष्ट हो गई थी। राजकुमारी द्वारा अन्य राजा को वरमाला डालते देखकर वे परेशान हो उठे और जल में झांककर अपना मुंह देखा तथा अपनी कुरूपता देखकर क्रोधित हो उठे। भगवान् विष्णु पर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि विष्णु के कारण ही उनका अपमान हुआ था। वे उसी समय विष्णु जी से मिलने के लिए चल पड़े। रास्ते में ही उनकी मुलाकात विष्णु जी से हो गई, जिनके साथ लक्ष्मी जी और विश्व मोहिनी भी थीं।
उन्हें देखते ही क्रोध से भरे नारद जी ने कहा कि मैं आपको शाप देता हूँ कि आपको मनुष्य जन्म लेना पड़ेगा। आपने हमें स्त्री से दूर किया है, इसलिए आपको भी स्त्री से दूरी का दु:ख सहना पड़ेगा और आपने मुझको बंदर का रूप दिया, इसलिए आपको बंदरों से ही मदद लेना पड़ेगा।
नारद के शाप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया और उन पर से अपनी माया को हटा लिया। माया के हट जाने से अपने द्वारा दिए शाप को याद करके नारद जी को बहुत दु:ख हुआ, किन्तु दिया गया शाप वापस नहीं हो सकता था। इसीलिए श्री विष्णु को श्री राम के रूप में मनुष्य बनकर अवतरित होना पड़ा।