भोपाल। हर बीमारी के इलाज में एंटीबायोटिक के उपयोग ने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। ज़्यादा उपयोग से अब अधिकांश एंटीबायोटिक बेअसर होते जा रहे हैं। कोरोना के बाद से सबसे ज़्यादा इस्तेमाल एजिथ्रोमाइसिन का हुआ है। मेडिकल स्टोर्स पर भी यह एंटीबायोटिक बिना किसी डॉक्टरी पर्चे के आसानी से मिलती रही है। यह हाल तब है, जब प्रदेश में एंटीबायोटिक पॉलिसी है, लेकिन इसे सख्ती से लागू ही नहीं किया गया। ख़्ातरे को भांपते हुए सरकार ने 2019 में एंटीबायोटिक पॉलिसी तैयार की थी। पॉलिसी में मुख्य रूप से इसके दुष्परिणामों के प्रति ज़ागरूक करने के साथ ही डॉक्टरों को बेवजह एंटीबायोटिक लिखने से रोकना था। यह पॉलिसी तैयार तो हुई, लेकिन आज तक लागू नहीं किया गया।
साल में 10 गोली से अधिक न लें
एंटीबायोटिक पॉलिसी बनवाने वाले रिटायर्ड स्वास्थ्य संचालक डॉ. पंकज शुक्ला के अनुसार, एंटीबायोटिक के ज़्यादा उपयोग से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होजाती है। जिंदगी में एक हज़ार से ज़्यादा एंटीबायोटिक खाने से किडनी खराब हो सकती है। सौ साल जीना है तो साल में 10 गोली से ज़्यादा न लें।
सामान्य बुखार में नहीं देना चाहिए एंटीबायोटिक
एम्स के डॉ. सागर खडंगा के अनुसार, बिना कल्चर टेस्ट के एंटीबायोटिक देना ठीक नहीं है। जिन मरीजों को 14 दिनों से कम बुखार है, गले में इन्फेक्शन नहीं हैं। उन्हें मलेरिया, टायफाइड हो सकता है। जांच में अगर ल्यूकोसाइट बढ़ा है तो एंटीबायोटिक दे सकते हैं। लेकिन सामान्य बुखार में एंटीबायोटिक नहीं देना चाहिए।